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________________ 108 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह चैत सुदी षष्टि सुखदाई, प्रभो पंचम गति पाई। अहो जिनराज को जजते, मुक्ति मिलती सहज भजते॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लषष्ठम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। जयमाला (दोहा) दुर्गम भवसागर विर्षे, तारण-तरण जिहाज । भक्ति भाव उर में धरूँ, गुण गाऊँ जिनराज॥ (वीर छन्द) पूजन करते नाथ आपकी, आनन्द अपरम्पार रे। भवविरहित हे सम्भव जिनवर, सहज लहूँ भवपार रे।।टेक॥ द्रव्येन्द्रिय,भावेन्द्रिय अरु, इन्द्रिय विषयों से भिन्न हो। सहज अतीन्द्रिय ज्ञानानन्दमय, अनुभव करूँ अखिन्न हो॥ करूँ देव परमार्थ स्तुति, रहूँ सहज अविकार रे ॥पूजन। एक शुद्ध निर्मम निर्मोही, स्वयं स्वयं को जान मैं। होय क्षीण मोहादि कर्म रिपु, ऐसा धारूँ ध्यान मैं ।। रहे प्रतिष्ठित ज्ञान, ज्ञान में, चाह न रही लगार रे॥पूजन।। उड़ते पक्षी की छाया सम, विषयों से सुख की आशा। महाक्लेशकारी प्रभु जानी, पुद्गल का क्या विश्वासा? हो निराश जग से हे स्वामिन् ! साधूं निज पद सार रे॥पूजन। रचना मेघ विघटते लखकर, जिनदीक्षा ली अविकारी। आत्मध्यान धरि कर्म नशाये, अक्षय प्रभुता विस्तारी।। धर्म-तीर्थ का किया प्रवर्तन, तिहुँ जग तारण हार रे॥पूजन॥ तीर्थ स्वरूप आपको पाकर, भेदज्ञान की ज्योति जगी। दुखकारी परलक्षी परिणति, नाथ सहज ही दूर भगी। करूँ देव अनुकरण आपका, शिवस्वरूप शिवकार ॥पूजन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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