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________________ १९८ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययम के साथ उपमेय का गुण लेश के कारण साम्य दिखाया जाए वहां उपमा होती है । दण्डी ने जिस-किसी प्रकार के सादृश्य की प्रतीति में उपमा की सत्ता मान ली। मम्मट ने परस्पर स्वतंत्र दो वस्तुओं में साधर्म्य को उपमा कहा है। ___उपरोक्त परिभाषाओं के अवलोकन से उपमा के चार अंग परिलक्षित होते हैं -- १. वह वर्ण्य-वस्तु, जिसकी तुलना अन्य वस्तु से की जाती है अर्थात् उपमेय। २. जिस वस्तु के साथ वर्ण्य-वस्तु की तुलना की जाए अर्थात् उपमान। ३. दोनों के बीच साधारण रूप से रहने वाला धर्म जिसे साधारण धर्म कहते हैं और ४. उपमेय उपमान के बीच सादृश्य वाचक शब्द । इन चार तत्त्वों-उपमेय, उपमान, साधारणधर्म तथा उपमावाचक शब्द-से उपमा अलंकार की योजना होती है। जहां ये चारों तत्त्व उपस्थित रहते हैं वह पूर्णोपमा तथा एक दो या तीन लुप्त होने पर लुप्तोपमा होती है। उपमानों का विवेचन श्रीमद्भागत की स्तुतियों में व्यासषि ने अनेक प्रकार की उपमाओं का प्रयोग किया है, जिससे काव्य-सौन्दर्य में वृद्धि हो जाती है। कवि अपने कल्पना क्षेत्र को विराट् बनाने के लिए सम्पूर्ण विश्व से उपमानों का चयन करता है । भागवतकार के उपमान प्रत्यक्ष जगत् तक ही सीमित नहीं बल्कि परोक्ष तथा अन्तर्जगत् से भी संग्रहित हैं। अग्निस्रोत मूलक, आकाशस्रोत मूलक, काष्ठादिस्रोत मूलक, ग्रहणक्षत्र आदि स्रोत मूलक, गृह एवं गृहोपकरण से सम्बन्धित, जल' से सम्बन्धित, दर्शन-शास्त्र, दिव्य पदार्थ एवं धातु-खनिज स्रोत मूलक, नर-नारी, ऋषि-मुनि, कला-कलाकार, बालक, विभिन्न प्रकार के नर वर्ग, पर्वत, पशु एवं तिर्यञ्च जगत, भाववाचक स्रोत, मेघविद्युत् आदि अनेक स्रोतों से उपमानों का ग्रहण कर भागवतकार ने विभिन्न प्रकार के उपमाओं का नियोजन किया है। १. भामह, काव्यालंकार २.३० २. दण्डी, काव्यादर्श २.२४ ।। ३. मम्मट, काव्यप्रकाश १०.१२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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