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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार स्तुतियों में उपमाओं का अद्भुत सौन्दर्य दृष्टिगोचर होता है । कुन्ती कृत भगवत्स्तुति में कुन्ती कहती है केचिदाहुरजं जातं पुण्यश्लोकस्य कीर्तये । यदोः प्रियस्यान्ववावे मलस्येव चन्दनम् ॥' जैसे मलयाचल की कीत्ति का विस्तार करने के लिए उसमें चन्दन प्रकट होता है, वैसे ही अपने प्रिय भक्त पुण्यश्लोक राजा यदु की कीत्ति का विस्तार करने के लिए ही आपने उनके वंश में अवतार लिया-यहां पूर्णोपमा है। राजा यदु की उपमा मलयाचल से तथा भगवान् की उपमा चन्दन से दी गई है । "इव" उपमा वाचक शब्द है मलयाचल पर्वत स्थिरता, धीरता, शैत्यता एवं पावनत्व आदि गुणों को धारण कर सदा मस्तक ऊंचा किए रहता है । यदु भी धीर, गम्भीर एवं उन्नत मस्तक वाले राजा हैं। चन्दन अपनी पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। शैत्य और पावनत्व के कारण वह सबके द्वारा मस्तक पर धारण किया जाता है । भगवान् कृष्ण भी इन्हीं गुणों से युक्त हैं इसलिए उपमेय-उपमान में सादृश्य के आधार पर सम्बन्ध स्थापित किया गया है। त्वयि मेऽनन्यविषया मतिर्मधुपतेऽसकृत् । रतिमुद्वहतादद्धा गङ्गवौघमुदन्वति ॥ हे कृष्ण ! जैसे गंगा की अखण्ड धारा समुद्र में गिरती रहती है, वैसी ही मेरी बुद्धि किसी दूसरी ओर न जाकर आपसे ही निरन्तर प्रेम करती रहे। यहां पर कृष्ण की उपमा सागर से तथा बुद्धि की उपमा गंगा की अखण्ड धारा दी गई है। लोक में अग्नि की अधिक महत्ता है। वह तेज, प्रकाश, दाहकताशक्ति, तेजस्विता और भस्मसात् करने की शक्ति से युक्त बताया गया है । श्रीमद्भागवत में अग्नि एवं उसके पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग उपमान के रूप में बहुश: किया गया है। एष देव दितेर्गर्भ ओजः काश्यपपितम्। दिशस्तिमिरयन सर्वा वर्धतेऽग्निरिवैधसि ।' देवतालोग कहते हैं-देव ! आग जिस प्रकार ईधन में पकड़कर बढ़ती रहती है उसी प्रकार कश्यप जी के वीर्य से स्थापित हुआ यह दिति का गर्भ सारी दिशाओं को अन्धकारमय करता हुआ बढ़ रहा है। यहां १. श्रीमद्भागवत १८।३२ २. तत्रैव १.८.४२ ३. तत्रैव ३.१५.१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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