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________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का काव्यमूल्य एवं रसभाव योजना १८१ विभाव हैं।' ___ध्यानादि करना, त्यागियों की तरह व्यापार करना, अहंकारादि का अभाव, समत्वभाव आदि इस रस के अनुभाव हैं। रोमांच, कम्प आदि सात्त्विक भाव हैं। निर्वेद, धृति, हर्ष, विषाद औत्सुक्य, आवेगादि संचारीभाव हैं । इस प्रकार चतुर्भुज श्रीकृष्णादि आलम्बन विभाव एवं उपनिषदादि का श्रवण एवं एकान्तवासादि के द्वारा उद्दीप्त होकर, ध्यानादि अनुभावों, रोमांच कम्पादि सात्त्विक भावों एवं धृतिहर्षादि संचारिकों की सहायता से अभिव्यक्त शान्ति रति या निर्वेद शम रूप स्थायी भाव रस दशा को प्राप्ति होता है और उसे शान्त रस कहते हैं । श्रीमद्भागवतीय स्तुतियों में शान्तरस का साम्राज्य पाया जाता है। भवमुक्ति वेला में परमहंसों में श्रेष्ठ, रथियों में महारथि एवं ज्ञानियों में मूर्धन्य पितामह भीष्म स्तुति करते हुए भगवान् के त्रैलोक्य सुन्दर चरणों में स्थिर हो जाते हैं तमिममहमजं शरीरभाजां हृदि हृदिधिष्ठितमात्मकल्पितानाम् । प्रतिदृशमिव नकधार्कमेकं समधिगतोऽस्मि विधूतभेदमोहः ॥ तत्त्वज्ञान से, भगवत्कथादि के श्रवण मनन आदि से उत्पन्न सहज निर्वेद ही स्थायी भाव है। भगवान् श्रीकृष्ण आलम्बनविभाव, शुद्ध एकान्त स्थान एवं तत्त्वनिर्णय आदि उद्दीपन विभाव, ध्यानादि या एकाग्रता अनुभाव है। स्वेद रोमांचादि सात्त्विक भाव एवं धृति हर्षादि संचारिकों के द्वारा निर्वेद रूपस्थायी भाव आस्वाद्यत्व को प्राप्त होकर रससंज्ञाभिधेय हो जाता है। वरान् विभो त्वद्वरदेश्वराद बुधः कथं वृणीते गुणविक्रियात्मनाम् । ये नारकानामपि सन्ति देहिनां तानीश कैवल्यपते वृणे न च ॥ मोक्षपति प्रभो ! आप वर देने वाले ब्रह्मादि देवताओं को भी वर देने में समर्थ हैं । कोई भी बुद्धिमान् पुरुष देहाभिमानियों के भोगने योग्य भोगों को कैसे मांग सकता ? वे तो नारकी जीवों को भी मिलते ही हैं। अतः इन तुच्छ विषयों को आपसे मैं नहीं मांगता । यहां पर चतुर्भुज भगवान् विष्णु आलम्बन विभाव है, यज्ञशाला, पवित्र स्थान आदि उद्दीपन विभाव है। सारे भोगों का परित्याग चरणशरणागति की इच्छा आदि अनुभाव है, रोमांचादि सात्त्विक भाव है। त्यागादि सहचारीभाव है। इन सबों के सहयोग से संसारिक विषयों के १. भक्तिरसामृत सिन्धु–पश्चिमविभाग १.७ एवं १.१३,१४,१५, २. श्रीमद्भागत १.९.४२ ३. तत्रैव ४.२०.२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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