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________________ १८० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन आदि ग्रन्थों में आठ रसों को स्वीकार कर शान्त रस की भी मान्यता प्रदान की गई है। नाट्यदर्पण ३.१८१, साहित्यदर्पण ३.१८२ आदि ग्रन्थों में नवरसों की स्वीकृति प्रदान की गई है। भक्तिरसामृतसिन्धु में श्रीलरूपगोस्वामी ने भक्तिरस को ही प्रमुखता प्रदान कर उसको मुख्य और अमुख्य रूप में विभाजित कर मुख्य भक्ति रस के पांच भेद (१) शान्तभक्तिरस (२) प्रीतिभक्ति रस (३) प्रेयोभक्तिरस (४) वत्सलभक्तिरस (५) मधुरभक्तिरस तथा अमुख्य भक्तिरस के सात भेद(१) हास्यभक्तिरस (२) अद्भुतभक्तिरस (३) वीरभक्तिरस (४) करुणभक्तिरस (५) रौद्रभक्तिरस (६) भयानकभक्तिरस (७) बीभत्सभक्तिरस स्वीकृत कर कुल बारह रसों का विवेचन किया है। प्रस्तुत संदर्भ में इसी को आधार मानकर प्रमुख रसों का विवेचन किया जाएगा। श्रीमद्भागवत भक्ति का उत्स है। उसके प्रत्येक अंश में भक्तिरस की निर्मल धारा प्रवाहित है। महामनीषी श्रीलव्यासदेव सम्पूर्ण वाङमय का निरूपण करके भी भगवान् के यशगायन के बिना अपूर्ण थे। तब महाभागवत नारदजी से उपदिष्ट होकर उन्होंने इस महापुराण की रचना की। श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में जो रस की सरिताएं प्रवाहित हैं वे मूलतः भक्ति के मानसरोवर से ही निःसृत हैं । १. शान्तरस शान्तरस का स्थायी भाव शान्तिरति है। इस भाव में भगवान् के संयोग सुख का आस्वादन होता है। कोई-कोई आचार्य निर्वेद को शान्त रस का स्थायी भाव स्वीकृत करते हैं । निर्वेद दो प्रकार का होता है ---एक तो इष्ट वस्तु की अप्राप्ति से तथा अनिष्ट वस्तु के संयोग से प्राप्त निर्वेद। यह स्थायी भाव नहीं हो सकता। परन्तु तत्त्वज्ञान के उदय से जागतिक विषयों के प्रति जो सहज निर्वेद है, वह शान्तरस का स्थायी भाव हो सकता है। चतुर्भज श्रीकृष्ण एवं शान्त, दान्त भागवत भक्त इसके आलम्बन विभाव तथा उपनिषदादि का श्रवण, एकान्तवास, अन्तर्मुखीवृत्ति, कृष्ण रूप की स्फति, तत्त्व का विवेचन विद्या की प्रधानता, शक्ति की प्रधानता, विश्वरूप का दर्शन, ज्ञानी भक्तों के साथ सम्पर्क आदि शान्तरस के उद्दीपन २. भक्तिरसामृतसिन्धु-पश्चिम एवं उत्तर विभाग ३. मम्मट, काव्यप्रकाश ४.४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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