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________________ ११२ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन नल कुबर मणिग्रीव भगवान् द्वारा उद्धार किए जाने पर उपकृत होकर प्रभु श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं। वे श्रीकृष्ण के नामकीर्तन, स्मरण, सेवन की ही कामना करते हैं।' __ गोप-सखा के रूप में प्रभु को पाकर ब्रह्मा जी स्तुति करते हैं। इस दीर्घकाय स्तुति में भगवान् श्रीकृष्ण की सार्वभौमता का प्रतिपादन किया गया है। ब्रह्मा जी कहते हैं --प्रभो एक मात्र आप ही स्तुति करने योग्य हैं । मैं आपके चरणों में नमस्कार करता हूं। आपका यह शरीर वर्षाकालिन मेघ के समान श्यामल है, इस पर स्थित बिजली के समान झिलमिलझिलमिल करता हुआ पिताम्बर शोभा पाता है। आपके गले में धुंधची की माला, कानों में मकराकृति कुण्डल तथा सिर पर मोर-पंखों का मुकुट है। इन सबकी कान्ति से आपके मुख पर अनोखी छटा छिटक रही है । वक्षस्थल पर लटकती हुई बनमाला और नन्हीं सी हथेली पर दही भात का कौर, बगल में बेंत और सींग तथा कमर की पेट में आपकी पहचान बताने वाली बांसुरी शोभा पा रही है। आपके कमल से सुकोमल परम सुकुमार चरण और सुमधुर वेष पर ही मैं न्योछावर हूं। भगवान् श्रीकृष्ण १५ वें अध्याय में अपने बड़े भ्राता की स्तुति करते हैं .... देव शिरोमणि ! यों तो बड़े-बड़े देवता आपके चरणकमलों की पूजा करते हैं, परन्तु देखिए तो ये वृक्ष अपने डालियों से सुन्दर पुष्प एवं फलों की सामग्री लेकर आपके चरणों में झुक रहे हैं, नमस्कार कर रहे हैं। इनका जीवन धन्य हो गया। भगवान् बलराम के दर्शन पाकर मोर नाच रहे हैं, हरिणियां तिरछी नयनों से प्रभु के उपर प्रेम प्रकट कर रही हैनत्यन्त्यमी शिखिन ईडय मुदा हरिण्यः कुर्वन्ति गोप्य इव ते प्रियमीक्षणेन । सूक्तैश्च कोकिलगणा गहमागताय धन्या वनौकस इयान् हि सतांनिसर्गः ।। यमुना जल को स्वच्छ करने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण कालियनाग का दमन कर रहे थे। नागपत्नियां अपनी सुहाग की याचना करती हुई भगवान् श्रीकृष्ण चरण-शरण प्रसन्न हुयी। नागपत्नियों की स्तुति आर्त १. श्रीमद्भागवत १०११०३८ २. तत्रैव १०।१४।१-४० ३. तत्रैव १०।१४।१ ४. तत्रैव १०।१५२५-८ ५. तत्रैव १०।१५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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