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________________ भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण १०५ उनको अपने वश में कर लिया है । अहो ! आप धन्य है जो निष्काम भाव से आपका भजन करते हैं उन्हें आप अपना स्वरूप भी दे डालते हैं।' "पुंसवनव्रत" के वर्णन प्रसंग में सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी नारायण की स्तुति का विधान किया गया है। शुकदेव जी कहते हैं---व्रतावसर में सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा इस प्रकार स्तुति करनी चाहिए--प्रभो ! आप पूर्णकाम है अतएव आपको किसी से लेना नहीं है । आप समस्त विभूतियों के स्वामी एवं सकलसिद्धि स्वरूप हैं । मैं आपको बार-बार नमस्कार करती सप्तमस्कन्ध की स्तुतियां सप्तम स्कन्ध में केवल भगवान् नृसिंह की स्तुतियां हैं। सप्तम स्कन्ध के आठवें अध्याय में जब भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए और हिरण्यकशिपु के उद्धार के लिए भगवान् नृसिंह अवतरित होते है तब ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र, ऋषिगण, पितर, सिद्ध, विद्याधर, नाग, मनु, प्रजापति, गंधर्व, चारण, यक्ष, किम्पुरुष, वैतालिक, किन्नर और विष्णुपार्षद उनकी स्तुति करते हैं । सबों की स्तुतियां एक श्लोकात्मक ही हैं। प्रारम्भ में ब्रह्मा इस प्रकार स्तुति करते हैं नतोऽस्म्यनन्ताय दुरन्तशक्तये, विचित्रवीर्याय पवित्रकर्मणे ॥ विश्वस्य सर्गस्थिति-संयमान् गुणः, स्वलीलया संदधतेऽव्ययात्मने ।' भगवान् नृसिंह को शांत करने का देवों का समस्त प्रयास जब विफल हो गया तब उन लोगों ने अनन्य भगवद्भक्त प्रह्लाद को नृसिंह के चरणों में सम्प्रेषित किया। भावसमाधि से स्वयं एकाग्र हुए मन के द्वारा भगवद्भक्त प्रह्लाद भगवान् के गुणों का चिंतन करते हुए स्तुति करने लगे। प्रह्लाद कृत यह भगवत्स्तुति अत्यन्त विशाल तथा निष्कामता से पूर्ण है। प्रह्लाद कहते हैं-ब्रह्मादि देवता, ऋषि-मुनि और सिद्ध पुरुषों की बुद्धि निरंतर सत्त्व गुण में ही स्थित रहती है। फिर भी वे अपनी धारा-प्रवाह स्तुति के द्वारा एवं विविध गुणों से आपको संतुष्ट कर नहीं सके । फिर मैं घोर असुर जाति में उत्पन्न हुआ हूं, क्या आप मुझसे संतुष्ट हो सकते हैं ? मैं समझता हूं कि धन, कुलीनता रूप, तप, विद्या, ओज, तेज, प्रभाव, बल, पौरुष, बुद्धि और योग ये सभी गुण परम पुरुष भगवान् को संतुष्ट करने में समर्थ नहीं हैं, १. श्रीमद्भागवत ६।१६।३४ २. तत्र व ६।१९।४-७,११-१४ ३. तत्र व ६।१९।४ ४. तत्र व ७।८।४० ५. तत्र व ७।९।८-५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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