SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन परन्तु भक्ति से भगवान् गजेन्द्र पर भी संतुष्ट हो गये थे। इस स्तुति में भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। भक्ति को ही भग्वत्प्राप्ति का एक मात्र साधन बताया गया है । तत् तेऽर्हत्तम नमः स्तुतिकर्मपूजाः कर्मस्मृतिश्चरणयोः श्रवणं कथायाम् । संसेवया त्वयि विनेति षडङ्गयाकि भक्तिं जनः परमहंसग तौ लभेत ॥ अष्टम स्कन्ध में समाहित स्तुतियां अष्टम स्कन्ध में ८ स्तुतियां समाहित हैं। तृतीय अध्यायान्तर्गत "गजेन्द्रमोक्ष' नामक स्तुति महत्त्वपूर्ण है। गजेन्द्र की स्तुति में भक्ति और ज्ञान के सारे तत्त्व एकत्र समन्वित हैं। जब तक जीव मात्र में अपनी शक्ति का अहंकार रहता है तब तक उसे प्रभु की याद नहीं आती। अपने शक्ति पर अहं स्थापित कर उसी को सर्वस्व मान बैठता है। जब वह अचानक किसी विपत्ति में फंस जाता है, पहले तो अपनी भरपूर शक्ति का प्रयोग करता है, परन्तु जब पूर्णत: थक जाता है, उसकी शक्ति कोई काम नहीं आती, मृत्यु मुख का ग्रास बनना निश्चित -सा लगने लगता है, तब किसी प्राक्तन संस्कार वश उसे सर्वसमर्थ एवं सर्वेश्वर प्रभु की याद आ जाती है। सब कुछ उसी को समर्पित कर देता है आप ही सब कुछ हैं, मेरे शरण्य हैं । तव याचना करता है- आर्त याचना-हे स्वामी ! मेरी रक्षा करो---उस स्वामी से जो स्वयंप्रकाश, स्वयंसिद्ध, सर्वसमर्थ एवं विश्वप्रपंच का मूल कारण है एव संपूर्ण संसार का साक्षी है। वही प्रभ अब रक्षा कर सकता है। महाभागवत गजेन्द्र उस परमेश्वर का शरण ग्रहण करता है जो "अस्मात्परस्माच्चपरः" हैं। संसार उन्हीं में स्थित है, वे ही इसमें व्याप्त हो रहे हैं। उनकी लीलाओं का रहस्य जानना बड़ा कठिन है । वे नट की भांति अनेक वेष धारण करते हैं। उनके वास्तविक स्वरूप को न देवता जानते हैं, न ऋषि ही फिर दूसरा ऐसा कौन प्राणी है जो वहां तक जा सके और उसका वर्णन कर सके । वे प्रभु मेरी रक्षा करें। यह गजेन्द्र मोक्ष कामधुग् है । किसी भी समय किसी भी कामना से इस स्तोत्र का पाठ करने पर सद्यः फल मिलता है। राष्ट्रपिता विश्ववन्ध महापुरुष महात्मा गांधी अपने महाप्रास्थानिक वेला के दो घंटे पहले अपने शिष्यों से कहे थे--- न जाने आज मेरा मन क्यों अत्यधिक चंचल है । सुनो ! १. श्रीमद्भागवत ७।८।८-९ २. तत्रैव ७।९।५० ३. तत्र व ८।३।२-२९ ४. तत्रैव ८।३।४ ५. तत्र व ८।३।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy