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________________ ५२ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग अनुशासन पा लिया। स्वरयंत्र ढीला है तो विकल्प आएगा कहां से? विकल्प आता है भाषा से। भाषा चाहे बोली जाने वाली भाषा हो या भीतर की भाषा हो। बाहर वचन न भी आए पर भीतर में तो हमारी भाषा चलती रहती है। जब-जब आदमी सोचता है तब-तब उसका फोटो लिया जाए, उसका परीक्षण किया जाए तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि एक ओर दिमाग में चिन्तन चल रहा है तो दूसरी ओर स्वरयंत्र का कंपन हो रहा है। स्वरयंत्र कंपित होगा चिंतन के साथ-साथ। जैसे ही हमारा चिंतन बंद हुआ, स्वरयंत्र का कंपन बन्द हो जाएगा या हमने स्वरयंत्र के कम्पन को बन्द किया तो हमारा चिंतन बंद हो जाएगा। विकल्प और स्वरयंत्र का कायोत्सर्ग या शिथिलीकरण- ये दोनों साथ में काम करते हैं। कितना महत्त्वपूर्ण उपाय खोजा गया था इसीलिए जब विकल्प ज्यादा आने लगते हैं तो उपाय बताया जाता है कि 'जालंधर बन्द' करो, यानी ठुड्डी को कण्ठकूप में लगाओ, कसकर लगाओ, दबा दो। विकल्प अपने आप बन्द हो जाएंगे। शरीर, भाषा और मन- इन तीनों में गहरा सम्बन्ध है। जब तक इन सम्बन्धों का अध्ययन नहीं किया जाता, इनके प्रभावों का अध्ययन नहीं किया जाता, तब तक अध्यात्म के तत्त्व को समझा नहीं जा सकता। विपरीत अभिनिवेश अध्यात्म के क्षेत्र में आज भी अनेक साधन हमें उपलब्ध हैं। यदि उन साधनों का सम्यक् प्रयोग किया जाए, उनका उपयोग किया जाए तो आत्मानुशासन की उज्ज्वल संभावनाएं हमारे सामने प्रस्तुत हो सकती हैं। पर आदमी तो बहुत उलटे चलते हैं। चाहते हैं अनुशासन पर आत्मानुशासन की जड़ को खोदने में लग जाते हैं। अनुशासन चाहने वाले लोग सबसे पहली बात यही मानते हैं कि धर्म की जीवन में कोई आवश्यकता नहीं। काम करो, उत्पादक श्रम करो, कोई चीज बनाओ, कुछ तैयार करो, पैदा करो। यह व्यर्थ का धंधा है धर्म में चले जाना। यह उन आलसी और निठल्ले लोगों का या सत्रहवीं शताब्दी में जीने वाले लोगों का धंधा है। आज का प्रबुद्ध आदमी सक्रिय आदमी, आज के वैज्ञानिक युग में भौतिक प्रगति करने वाला आदमी, अमेरिका और जापान बनने का स्वप्न लेने वाला राष्ट्र अगर इन निकम्मे धर्म के धंधों में फंस जाएगा तो प्रगति की होड़ में पीछे रह जाएगा, वह गए-गुजरे जमाने का आदमी बन जाएगा, राष्ट्र बन जाएगा। हम तो मूल में प्रहार करना चाहते हैं आत्मानुशासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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