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________________ जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता ५३ पर। जब कभी कोई प्रसंग आता है प्रबुद्ध लोगों का तो वे सबसे पहले ज्यादा से ज्यादा प्रहार करते हैं तो धर्म पर करते हैं। अनुशासन की मांग और आत्मानुशासन पर प्रहार ! अगर आत्मानुशासन का विकास हो जाए तो फिर परानुशासन की पकड़ भी कम हो जाए। लोग नहीं चाहते कि ऐसा हो । इसलिए वे धर्म को, अध्यात्म को या आत्मानुशासन को बहुत मूल्य नहीं देते, किन्तु परिस्थितियों का चक्र इस प्रकार घूमा है कि हजार उपाय कर लेने पर भी जब अनुशासन की समस्या हल नहीं हो रही है तो आज फिर इस दुनिया में अध्यात्म का स्वर उभरता जा रहा है। आज सारे संसार में योग की मांग है। विवशता आत्मानुशासन की ओर लौटने की प्रश्न होता है- आसन क्यों ? इतनी दवाइयां, इतने साधन, इतने हॉस्पिटल, इतने स्पेशलिस्ट फिर आसन की जरूरत क्यों ? दवाइयां देने वाले डॉक्टर भी सुझाते हैं कि दवाई से स्थायी लाभ नहीं होगा, तुम आसन का प्रयोग करो, योगा करो । घुटने में दर्द है; हड्डी टूट गई है। डॉक्टर कहते हैं - अब दवा का काम तो हो गया, पट्टे का काम तो हो गया, अब योगा करो। आजकल हर हॉस्पिटल के साथ योगा जुड़ गया। क्या यह फिर आत्मानुशासन की ओर लौटने का कदम नहीं है ? आज चिकित्सक आत्मानुशासन की ओर लौट रहे हैं, दीर्घश्वास का प्रयोग करो । फेफड़ा कमजोर है, दमा है, डॉक्टर दवा देते हैं, साथ में यह कहते हैं कि दवा से एक बार लाभ हो जाएगा, स्थायी लाभ चाहते हो तो प्राणायाम करो । किसी आदमी के मानसिक विकृति है । मानसिक चिकित्सक चिकित्सा करता है, साथ में कहता है ध्यान का अभ्यास करो। ध्यान सीखो । हृदय की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर या शुगर की बीमारी है, डॉक्टर कहते हैं कि चीनी मत खाओ, मिर्च-मसाले मन खाओ, इन सब चीजों को छोड़ो। वी० पी० बहुत ऊंचा है अत: तली हुई चीजों को मत खाओ । चिकनी चीजें मत खाओ । ज्यादा प्रोटीन मत खाओ, ज्यादा दूध भी नहीं - सारी वर्जनाएं । अरे! चले भोग के लिए, त्याग की बात करने लग गए ! आत्मानुशासन की दिशा में अब नया प्रस्थान हो रहा है और लग रहा है कि चिकित्सा के क्षेत्र में इतने आविष्कार, अनुसंधान और दवाइयों के हो जाने पर भी डॉक्टर लोग अब ज्यादा उन बातों को सुझाने लग गए हैं, जो आत्मानुशासन के तत्त्व थे । नहीं तो उनका मेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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