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________________ जीवन विज्ञान-शिक्षा की अनिवार्यता लिए मन की स्वस्थता जरूरी है। पर दोनों में मूल है- शरीर की स्वस्थता, शरीर की सारी क्रियाओं का सम्यक संचालन। यदि शरीर की सारी क्रियाओं का सम्यक संचालन होता है तो अनुशासन विकसित होता है, यदि वैसा नहीं है तो अनुशासन की गड़बड़ी प्रारंभ हो जाएगी। हम पत्ते और फूल के अनुशासन को लाना चाहते हैं और 'जड़' (मूल) के अनुशासन को विस्मृत कर देते हैं। अनुशासन कभी नहीं आएगा। महत्त्वपूर्ण खोजें मन को साधने की आत्मानुशासन आएगा शरीर के अनुशासन से, मन के अनुशासन से। मानसिक अनुशासन के लिए अध्यात्म के आचार्यों ने सैकड़ों-सैकड़ों पद्धतियां खोजी थीं। वे बहुत महत्त्वपूर्ण थीं। सबसे कठिन काम होता है इन विकल्पों के जाल को रोकना। इतनी कल्पनाएं आती हैं, जिनका कहीं अन्त नहीं है। वे हैं असीम और अनन्त। आदमी नहीं चाहता कि कल्पनाएं आएं। वह शांत रहना चाहता है, पर ज्ञान के तन्तु ढीले हो जाते हैं, मस्तिष्क के तन्तु ढीले हो जाते हैं तब आदमी रोक नहीं पाता। वह अपने पर नियन्त्रण या अनुशासन नहीं कर पाता। व्यर्थ की कल्पनाएं आती हैं, जिनका जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं। जिनके कार्यक्रम से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं, वे सारी कल्पनाएं आती रहती हैं। उन कल्पनाओं को रोकने का अध्यात्म के सिवाय और कोई उपाय नहीं है। चिकित्सा के क्षेत्र में डाक्टरों के पास एक उपाय है, कुछ गोलियां दे देना, ट्रॅक्विलाइजर का प्रयोग कर देना या नींद की गोलियां देकर सुला देना। यह कोई उपाय नहीं है। वे गोलियां शरीर के लिए हानिकारक होती हैं, हानि पहुंचाती हैं, और अधिक मानिसक अस्त-व्यस्तता पैदा कर देती हैं। अध्यात्म ने विचार-शून्यता के लिए निर्विकल्पता के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय खोजा था, वह था जीभ को स्थिर करना, यानी स्वरयंत्र को स्थिर करना। योग के अनुभवी आदमी से पूछा जाए कि विकल्प बहुत आते हैं, क्या करूं? वह कहेगा- खेचरी मुद्रा करो, जीभ को उलट कर तालू की ओर ले जाओ, जीभ को अधर में रखो। जीभ न ऊपर छुए, न दाएं-बाएं छुए। जीभ को अधर में रखो और हिलने मत दो। जीभ को स्थिर कर लो। वह बताएगा कि जीभ को दांतों की जड़ दबा दो, जिससे वह हिले-डुले नहीं और सबसे अनुभवी होगा तो वह बताएगा कि स्वरयंत्र का कायोत्सर्ग कर लो, स्वरयंत्र को ढीला छोड़ दो। जिसने स्वरयंत्र को ढीला करना सीख लिया उसने मानसिक विकल्पों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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