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________________ जाता है और सुनते-सुनते यह बात पकड़ लेता है कि मन की गांठ कहां घुली है? मानसिक ग्रन्थि कहां बनी है? क्या बीमारी है? कौन-सी वृत्तियों का दमन हुआ है? किस प्रकार की ग्रन्थि बनी है? वह फिर उन ग्रन्थियों को खोलने का प्रयत्न करता है। अध्यात्म की चिकित्सा भी इसी प्रकार चलती है। ध्यान की भी यही प्रक्रिया है। आर्त्त-रौद्र ध्यान के द्वारा जो ग्रन्थियां बनती हैं वे ग्रन्थियां शारीरिक और मानसिक विकृतियां पैदा करती हैं, रोग पैदा करती हैं। मैं मानता हूं कि मनोविज्ञान का यह सूत्र गलत नहीं है कि जो वृत्ति दबाई जाती है, वह वृत्ति शारीरिक और मानसिक रोग पैदा करती है। इसे हम अध्यात्म की भाषा में समझें। ज्यों ही वृत्ति का दमन किया, दबाने का प्रयत्न किया; यदि निर्जरा नहीं की, उसका रेचन नहीं किया तो उसका बंध हो जाएगा। वह बंध सताता रहेगा। क्रोध आता है और चला जाता है। आप यह न मानें कि क्रोध आया और चला गया। यह बहुत बड़ी भ्रान्ति होगी। क्रोध आया, चला गया। स्थूल शरीर से चला गया, पता नहीं चलता कि क्रोध है। क्रोध आया था इस शरीर की आकृति में। अब क्रोध अणु बनकर हमारे भीतर पैठ गया। जो क्रोध व्यक्त हुआ था अपने रूप में वह तो चला गया, किन्तु उसने अपना आणविक रूप छोड़ दिया। कर्म के भी परमाणु हैं। हमारे जो कर्म का बंध होता है, वह परमाणु का बंध होता है। यह आणविक क्रोध हमारे भीतर है। वह सताता रहता है। वह तनाव पैदा करता है। हमें निर्जरा करना, रेचन करना, शोधन करना सीखना होगा। हम ध्यान के द्वारा यह सीखें। हम क्रोध का दमन न करें, उसका रेचन करें, उसका शोधन करें। क्रोध का संवर करें, क्रोध का विवेक करें। कैसे करें-यह एक लम्बी चर्चा है। प्रश्न-राग से सामाजिकता शुरू होती है तो क्या वीतराग सामाजिक नहीं होता? या वीतराग के सामाजिकता नहीं होती? उत्तर-सचमुच वीतराग कभी सामाजिक नहीं होता। वीतराग कोरा व्यक्ति होता है। वह समाज में रहता है, पर सामाजिक नहीं होता। हम वीतराग उसी को मानते हैं जो समाज में रहता हुआ भी अकेला रहे; व्यक्ति रहे। वीतराग तो दूर की बात है, साधक वही होता है जो समाज १५२ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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