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________________ में अहँ की ध्वनि करते हैं, अहँ की भावना करते हैं। तब व्यक्ति-व्यक्ति में अनन्त-ज्ञान, अनन्त-दर्शन, अनन्त-शक्ति और अनन्त-आनन्द की भावना जागती है। वह सोचता है, मेरे में अनन्त-ज्ञान है, अनन्त-शक्ति है, अनन्त-दर्शन है और अनन्त-आनन्द है। मुझे किसी दूसरे आनन्द की जरूरत नहीं है। किसी पदार्थ से मैं आनन्द को उपलब्ध नहीं हो सकता। जो शून्य हो उसे कोई आनन्द से भरे। मैं अनन्त-आनन्द से सम्पन्न हूं, परिपूर्ण हूं। जब व्यक्ति इस अनन्तचतुष्टयी की भावना से भावित होता है, सम्मोहित होता है तब शेष सारे सम्मोहन चूर-चूर होकर टूट जाते हैं। कोई नहीं टिक पाता। स्व-सम्मोहन या भावना के द्वारा दिशा-परिवर्तन घटित होता है। इसके द्वारा तनाव विसर्जित होता है। तनाव-विसर्जन का तीसरा सूत्र है-विचय-ध्यान। विचय का अर्थ है-विश्लेषण। प्रेक्षा एक विश्लेषण है। यह आत्म-विश्लेषण है, सेल्फ एनलिसिस है। व्यक्ति आत्म-विश्लेषण करे, क्रोध क्यों आता है? लोभ क्यों जागता है? मिथ्या दृष्टि क्यों जागती है? इसका हम विश्लेषण करें। हम विश्लेषण नहीं करते तब ये सारी भावनाएं पनपती रहती हैं। जब हम अपना विश्लेषण प्रारंभ करते हैं, अपनी ज्ञान-शक्ति को जगाते हैं तब ये सारी बातें टूटने लग जाती हैं। जो व्यक्ति अपनी ज्ञान-शक्ति का उपयोग नहीं करता, उसमें ये सारी विकृतियां पनपती रहती हैं। हम अपनी ज्ञान-शक्ति का उपयोग करें। विश्लेषण करें। जब हम अपना विश्लेषण करतें हैं तब आर्त्त-रौद्र ध्यान छूट जाते हैं, धर्म-ध्यान शुरू हो जाता है। धर्म-ध्यान का प्रारंभ होता है विचय के द्वारा, विश्लेषण के द्वारा। यह विचय की प्रक्रिया, विश्लेषण की प्रक्रिया चिकित्सा की प्रक्रिया है। आज का मनोचिकित्सक सबसे पहले विश्लेषण का सहारा लेता है। कोई भी मानसिक बीमारी से ग्रस्त-व्यक्ति मानस-चिकित्सक के पास जाता है तो वह चिकित्सक सबसे पहले उसे कायोत्सर्ग कराता है, शिथिलीकरण करने के लिए कहता है। इसके बाद कहता है-'अपना विश्लेषण करो, प्रतिक्रमण करो, अतीत की ओर लौटो और मन में जो-जो बातें आएं वह निःसंकोच कहते जाओ। छुपाओ मत। अब वह रोगी अपना विश्लेषण करता है, प्रतिक्रमण करता है। मनोचिकित्सक सुनता तनाव और ध्यान (२) १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003062
Book TitleAbhamandal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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