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________________ ११४ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान इस प्रकार उपरोक्त वर्णन के आधार से ज्ञात होता है कि इसमें जैनदर्शन के विभिन्न अंग, उपांग, चौदह पूर्व, प्रकीर्णक आदि विविध ग्रन्थों का स्थविर आचार्य भगवन्तो द्वारा उल्लेख किया गया है उन शास्त्रों में आचारांग, सूत्रकृताग, समवायांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती), ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग आदि ग्यारह अंगों के नाम, औपपातिकादि बारह उपांगो के नाम आदि का उल्लेख किया गया है। इनके अलावा हरिभद्रसूरिजी विरचित चौदहसौ रचनाओं का तथा अन्य युगप्रधानसूरियों के द्वारा रचित ग्रन्थों का वर्णन किया गया है। अन्त में गाथा क्रमांक २४, २५, २६ एवं २७ के द्वारा युगप्रधानसूरिजी के विशेषणों का वर्णन निम्म प्रकार से किया गया है। ठाणठ्ठाण ट्ठियमग्ण नासि सन्देहि मोहतिमिरहरा । कुग्गहिवग्गकोसियकुलकवलियलोयणा लोया ॥ २४ ॥ तेहिं पभासियं जंतं विहड़इ नेय घड़इ जुत्तीए। वंदे सुत्तं सुत्ताणुसारि संसारि-भय-हरणं ॥ २५ ॥ गुरु गयणयल-पसाहणपत्तपहो पयडियासमदिसोहो। हयसिवपहसंदेहो कयभव्वंभोरुह-विबोहो ॥२६॥ सूरू व्व सूरि जिणवल्लहो य जाओ जए जुगपवरो। जिणदत्त गणहर पयं तप्पय-पणयाण होइ फुडं ॥२७॥ तात्पर्य यह है कि उस समय सर्वत्र मोहन्धकार फैला हुआ था। उसके विदारक, कदाग्रहरूपी उलूकों के लोचनप्रकाश को नष्ट करनेवाले, सूत्रों के वास्तविक एवं शुद्ध अर्थ के द्वारा संसारभय को हरनेवाले, सूत्रों का अनुसरण करनेवाले सूत्र को वन्दन स्वीकार हो। आकाश के समान व्यापक प्रसाद (कृपा)वाले, प्रभावक और अपूर्व शोभायुक्त, मोक्षमार्ग के समस्त संदेह को नष्ट करनेवाले संदेहविदारक गुरु को वन्दन स्वीकार हो । अन्त में २६ वी गाथा के द्वारा युगप्रधान आचार्यश्री जिनवल्लभसूरिजी की तुलना देवगुरु बृहस्पति से करते हुए एवं वन्दना करते हुए कहते हैं देवगुरु बृहस्पति के समान प्रज्ञावान जिनवल्लभसूरि आदि युगप्रधान आचार्य अपने गणधरों के प्रयत्नपूर्वक किये हुए प्रणाम से उनके सभी प्रकार के दुःखों को दूर करनेवाले एवं सद्बुद्धिप्रदायक होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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