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________________ पाण्डवपुराणम् जित्वा मेघसुरान्सुरेन्द्रसमतां भेजे स भव्योत्तमः । हत्वा वैरिगणान्गुणेन सुगुणी दीप्यञ्जयाख्यो जयी । सेनानीमणिरुत्तमो नरसुरैः संसेव्यपादाम्बुजो । धर्मस्यैव विजृम्भितेन भुवने मान्यो जनो जायते ॥२४९ इति भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे श्रीपाण्डवपुराणे महाभारतनाम्नि जयस्य सेनापतिपदप्राप्तिवर्णनं नाम द्वितीयं पर्व ॥ २ ॥ । तृतीयं पर्व । जिनं नौमि जितारातिं वृषभं वृषलाञ्छनम् । वृषभं वृषदातारं वृषार्थिजनसेवितम् ।।१ अथ सोमप्रभस्यान्ये सुताश्च विजयादयः । गुणैर्विजज्ञिरे रम्याश्चतुदशमनूपमाः ॥२ तैः पश्चदशभिः पुत्रै रेजे राजा सुराजवत् । अन्यदा कायभोगेषु विरक्तोऽभूद्विशांपतिः ॥३ विभज्य राज्यं संयोज्य धुर्य शौर्योर्जिते जये। गत्वा स वृषभस्यान्ते दीक्षित्वा मोक्षमन्वभूत्।।४ ........ तमें मान्य होता हैं ॥२४९॥ ब्रह्मश्रीपालकी सहायतासे श्रीशुभचन्द्रभट्टारकद्वारा रचित पाण्डवपुराणमें अर्थात् महाभारतमें जयकुमारको सेनापतिपद-प्राप्तिका वर्णन करनेवाला दूसरा सर्ग समाप्त हुआ ॥२॥ [ तृतीय पर्व ] जिन्होंने कर्म-शत्रुओंपर विजय प्राप्त किया है, जो वृषभसे-धर्मसे शोभायमान हैं, बैल जिनका चिह्न है, जो भव्योंको धर्मोपदेश देते हैं, धर्मार्थी जन जिनकी सेवा करते हैं, उन वृषभनाथ जिनेश्वरकी मैं स्तुति करता हूं ॥१॥ [जयकुमार नृप नागनागीका चरित्र कहते हैं। ] सामप्रभ राजाको जयकुमारके अतिरिक्त गुणोंसे सुन्दर तथा चौदह मनुओंके समान विजय आदि चौदह पुत्र थे । उन पन्द्रह पुत्रोंके साथ वह राजा इन्द्र के समान शोभता था। किसी समय राजा सोमप्रभको शरीर और भोगोंसे वैराग्य हुआ। अपना समस्त राज्य समस्त पुत्रोंमें विभक्त कर शौर्यसे श्रेष्ठ जयकुमारको उनपर नियुक्त किया । जैसे पूर्वकालमें श्रेयांस राजाके साथ नृपपदका अनुभव सोमप्रभ राजाने किया था वैसेही अब उसके साथ आदि भगवान के समीप दीक्षा लेकर मुक्तिसुखका अनुभव लेने लगा ॥ २-४ ॥ किसी समय जयकुमार राजा क्रीडा करने के लिये नगरके बाहर घने उपवनमें चला गया । वह बैठे हुए दर्शनीय शीलगुप्त नामक मुनीश्वरको उसने नमस्कार किया। वहां नागयुग्मके साथ धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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