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________________ द्वितीय पर्व हिमांशोजगदाहादी भास्करात्स प्रतापवान् । अकूपारात्परादृष्टपारः कोऽपि महानरः।।२३८ समटिष्यति सुस्पष्टमावयार्वेश्मनि स्फुटम् । तावता मध्यदिवसे समाट स च तद्गहे।।२३९ तद्दर्शनसमानन्दाज्जातपूर्वभवस्मृतिः । श्रेयान्सोमप्रमेणामा पपात जिनपद्युगम् ॥२४० विधिना विधिवद्राधे तृतीयादिवसे स च । मधुरेक्षुरसेनास्य कारयामास पारणम् ॥२४१ तत्क्षणेक्षणसंदीप्ता रत्नवृष्टिगृहाङ्गणे । बभूव तस्यागाद्देवो वनं मौनी महामनाः ॥२४२ जिनः सहस्रवर्षान्ते फाल्गुनैकादशीदिने । कृष्णपक्षेऽथ संप्रापत्केवलज्ञानमद्भुतम् ॥२४३ चक्रोत्पत्त्या नरेन्द्रोऽसौ भरतो भारतं खलु । संसाधयितुमुधुक्तो बभूव बलमण्डितः ॥२४४ जयं च कौरवाधीशमाहूयास्थापयत्तराम् । स सेनानीपदे रत्नं सहस्रसुररक्षितम् ॥२४५ स चक्री सैन्यचक्रेण सहस्रषष्टिवर्षणैः । संसाध्य भारतं क्षेत्रं विनीतामाजगाम च ।।२४६ जयो मेघेश्वरांल्लेखाञ्जित्वा मेघखराभिधाम् । लब्धवान्भरताधीशाद्राज्ये गजपुरे स्थितः॥२४७ मेघस्वरः शुद्धमना मनोहरो जीयान्महाशत्रुजये कृतोद्यमः । नीत्या निरस्तदुरितो जयनामधेयः सच्चक्रवर्तिहृदयाम्बुजसप्तसप्तिः ।।२४८ के दिन श्रेयांस राजाने ईखके मधुर रससे आदिभगवानकी पारणा कराई । आहारके समय तत्काल सुन्दर कान्तिधारक रत्नोंकी वृष्टि राजाके गृहाङ्गणमें हुई। मौनी महामना आदिभगवान् बनको चले गये ॥ २४०-२४२ ॥ आदिभगवानने एक वर्षतक तप किया । पश्चात् फाल्गुन कृष्ण एकादशीके दिन उनको महान् केवलज्ञान प्राप्त हुआ ॥ २४३ ॥ चक्रोत्पत्ति होनेके अनंतर भरतराजेन्द्र सेना लेकर समस्त भरतक्षेत्रको साधने के लिये उद्युक्त हुए। उन्होंने कौरवोंके अधिपति जयकुमारको बुलाकर सेनापतिके पदपर स्थापित किया। यह सेनापतिरत्न हजार देवोंसे रक्षण किया जाता था । भरतचक्रवर्ती सैन्य तथा चक्ररत्नके साहाय्यले साठ हजार वर्षों में भरतक्षेत्रको वश करके विनीता नगरी अर्थात् अयोध्या को लौट आये। जयकुमारने मेघेश्वर नामके देवोंको पराजित कर भरतेश्वरसे मेघस्वरपद प्राप्त किया और वह हस्तिनापुरके राज्यमें सुखसे रहने लगा ॥ २४४-२४७ ॥ शुद्ध अन्तःकरणवाला, दुसरोंके मनको हरण करनेवाला, बडे बडे शत्रुओंको जीतनके लिये सदा उद्युक्त, नीतिके आचरणसे पापनाशक, तथा भरत चक्रवर्तीके हृदयकमलको प्रफुल्लित करनेमें सूर्यके समान ऐसे जयकुमार सेनापति सदा विजयशाली होवे ॥ २४८॥ जिसने मेघेश्वर देवोंको जीतकर देवेन्द्रकी समताको धारण किया, जो भव्यश्रेष्ठ है, शत्रुसमूहको मारकर गुणोंसे सुगुणवान् कहलाया, जो तेजस्वी, जयवान् तथा उत्तम सेनापतिरत्न हुआ ऐसा जयकुमार मनुष्य और देवोंके द्वारा वन्दनीय हुआ। यह योग्यही है कि धर्मके माहात्म्यसे प्राणी जग १ म. स. नीत्या निरस्तारिततिर्जयाभिधः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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