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________________ समत्व प्राप्ति की प्रक्रिया - योग, नप, आध्यात्मिक,.... २७७ दूध आदि तथा मद्य, मधु, मक्खन आदि विकारवर्धक रसों का त्याग करना । ५. विविक्त शय्यासन - बाधारहित एकान्त स्थान में रहना । ६. कायक्लेश - ठंड, गरमी या विविध आसनादि द्वारा शरीर को कष्ट देना । आभ्यन्तर तप आभ्यन्तर तप के छः प्रकार ये हैं - १. प्रायश्चित्त - धारण किए हुए व्रत में प्रमादजनित दोषों का शोधन करना । २. विनय - ज्ञान आदि सद्गुणों में आदरभाव । ३. वैयावृत्त्य - योग्य साधनों को जुटाकर अथवा अपने आपको काम में लगाकर सेवाशुश्रूषा करना । विनय और वैयावृत्त्य में यही अन्तर है कि विनय मानसिक धर्म है और वैयावृत्त्य शारीरिक धर्म है । ४. स्वाध्याय - ज्ञान प्राप्ति के लिए विविध प्रकार का चित्त अध्ययन करना । ५. व्युत्सर्ग- अहंता और ममता का त्याग करना । ६. ध्यान के विक्षेपों का त्याग करना । १९ २० । - (१) कायोत्सर्ग धर्म या शुल्क - ध्यान के लिए एकाग्र होकर शरीर पर से ममता का त्याग करना कायोत्सर्ग है । कायोत्सर्ग को यथार्थ रूप में करने के लिए इस के दोषों का परिहार करना चाहिए। वे घोटक आदि दोष संक्षेप में उन्नीस हैं ( आ. नि., गा. १५४६-१५४७) । I आचार्य अकलक ने व्युत्सर्ग की परिभाषा की है - निःसंगता - अनासक्ति, निर्भयता और जीवन की लालसा का त्याग । व्युत्सर्ग इसी आधार पर टिका हुआ है । धर्म के लिए, आत्मसाधना के लिए अपने-आपको उत्सर्ग करने की विधि ही व्युत्सर्ग है । व्युत्सर्ग के गण व्युत्सर्ग, शरीर व्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपान व्युत्सर्ग ये चार भेद हैं। - शरीर व्युत्सर्ग का नाम कायोत्सर्ग है । कायोत्सर्ग से देह की जड़ता और बुद्धी की जड़ता दूर होती है, अर्थात् वात आदि धातुओं की विषमता दूर होती है और बुद्धि की मन्दता दूर होकर विचारशक्ति का विकास होता है । सुख - दुःख तितीक्षा अर्थात अनुकल और प्रतिकूल दोनों प्रकार के संयोगो में समभाव से रहने की शक्ति कायोत्सर्ग से प्रकट होती १. तत्वार्थसूत्र २१८, २१६, श्लोक १६- २० २. निःसंग नभियत्व जीविताशा व्युदासाधर्थो व्युत्सर्गः । ३. भगवतीसूत्र २५ / ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only तत्त्वार्थ राजवर्तिका द्वश्दा १० www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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