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________________ २७८ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि है । भावना और ध्यान का अभ्यास भी कायोत्सर्ग से ही पुष्ट होता है। अतिचार का चिन्तन भी कायोत्सर्ग में ठीक-ठीक हो सकता है। इस प्रकार देखा जाय तो कायोत्सर्ग बहुत महत्त्व की क्रिया है । कायोत्सर्ग की साधना करते समय देवता, मनुष्य तथा तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्ग भी हो सकते हैं, साधक उन उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करे तभी उसका कायोत्सर्ग शुद्ध हो सकता है । कायोत्सर्ग जीवन की प्रतिदिन की साधना है, वह आवश्यक है । उसमें क्षण-क्षण में कायोत्सर्ग की भावना करनी चाहिए। भगवान ने कहा- अभिक्खणं काउस्सग्गकारी - अभीक्ष्ण पुनः पुनः कायोत्सर्ग करता रहे। वह प्रति समय यह अभ्यास करे कि शरीर अन्य है और आत्मा अन्य है । प्रकारान्तर से कायोत्सर्ग के दो भेद हैं- (१) द्रव्य कायोत्सर्ग (२) भाव कायोत्सर्ग । द्रव्य में काय चेष्टा का निशेध होता है और भाव में धर्म एवं शुल्क ध्यान में रमण होता है । OP कायोत्सर्ग की योग्यता प्रतिक्रमण कर लेने पर ही आती है। इसका कारण यह है कि जब तक प्रतिक्रमण द्वारा पाप की आलोचना करके चित्त-शुद्धि न की जाय, तब तक धर्मध्यान या शुक्लध्यान के लिए एकाग्रता संपादन करने का, जो कायोत्सर्ग का उद्देश्य है, वह किसी तरह सद्धि नहीं हो सकता । आलोचना के द्वारा चित्त शुद्धि किये बिना जो कायोत्सर्ग करता है, उसके मुँह से चाहे किसी शब्द-विशेष का जप हुआ करे, लेकिन उसके दिल में उच्च ध्येय का विचार कभी नहीं आता । वह अनुभूत विषयों का ही चिन्तन किया करता है 1 - कायोत्सर्ग करके जो विशेष चित्त शुद्धि, एकाग्रता और आत्मबल प्राप्त करता है, वही प्रत्याख्यान का सच्चा अधिकारी है। जिसने एकाग्रता प्राप्त नहीं की है और संकल्पबल भी पैदा नहीं किया है, वह यदि प्रत्याख्यान कर भी ले तो भी उसका ठीक-ठीक निर्वाह नहीं कर सकता । प्रत्याख्यान सबसे ऊपर की 'आवश्यक क्रिया' है। उसके लिए विशिष्ट चित्त शुद्धि और विशेष उत्साह की दरकार है, जो कायोत्सर्ग किये बिना पैदा नहीं हो सकते । इसी अभिप्राय से कायोत्सर्ग के पश्चात् प्रत्याख्यान रखा गया है । I १. आवश्यक नियुक्ति १५४९ सो पुण काउस्सग्गो दव्वतो भावतो य भवति । दव्वतो कायचेडा नारदो भवतो काउस्सग्गो झाणं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only आवश्यक चूणी www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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