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________________ २७६ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि मानवजीवन में तप का विशिष्ट स्थान है। संयम व नियम के बिना मानव विकाससम्भव ही नहीं। त्याग-तपश्चर्या आध्यात्मिक व आत्मिक सुख की सीढ़ी है। इसके शक्ति के सागर के शान्त प्रवाहों में वैरियों के वैमनस्य लय हो जाते हैं और विरोधक शक्तियों के प्रचण्ड बल भी धीरे - धीरे शान्त पड़ जाते हैं। तप का महत्त्व व गौरव उसके पीछे रहे हुए किसी उदात्त हेतु एवं भावबुद्धि पर अवलम्बित है तथा आत्मिक सुख-प्राप्ति ही इसका प्रमुख ध्येय होना चाहिए। तप के महत्त्व और स्वरूप में अंतगडदसा, भगवतीसूत्र, ओपपातिक अत्तवाइय, उत्तराध्ययन और स्थानांग सूत्र भरे पड़े हैं। अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशाः बाह्य तपः ।१९। प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ।२०। अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश - ये बाह्य तप हैं। प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान - ये आभ्यन्तर तप हैं। वासनाओं को क्षीण करने तथा समुचित आध्यात्मिक शक्ति की साधना के लिए शरीर, इन्द्रिय और मन को जिन-जिन उपायों से तपाया जाता है वे सभी तप कहे जाते हैं । तप के बाह्य और आभ्यन्तर दो भेद हैं । बाह्य तप वह है जिसमें शारीरिक क्रिया की प्रधानता हो तथा जो बाह्य द्रव्यों की अपेक्षा सहित होने से दूसरों को दिखाई दे। आभ्यन्तर तप वह है जिसमें मानसिक क्रिया की प्रधानता हो तथा जो मुख्य रूप से बाह्य द्रव्यों की अपेक्षा से रहित होने से दूसरों को दिखाई न भी दे । स्थूल तथा लोगों द्वारा ज्ञात होने पर भी बाह्य तप का आभ्यन्तर तप की पुष्टि में उपयोगी होने से ही महत्त्व माना गया है । बाह्य और आभ्यन्तर तप के वर्गीकरण में समग्र स्थूल और सूक्ष्म धार्मिक नियमों का समावेश हो जाता है। बाह्य तप : बाह्य तप के छ: प्रकार ये हैं - १. अनशन विशिष्ट अवधि तक या आजीवन सब प्रकार के आहार का त्याग करना । इनमें पहला इत्वरिक और दूसरा यावत्कथिक है। २. अवमौदर्य या अनोदरी - जितनी भूख हो उससे कम आहार करना । ३. वृत्तिपरिसंख्यान - विविध वस्तुओं की लालसा कम करना । ४. रसपरित्याग - घी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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