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________________ २३८ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि . देश-काल का वातावरण, आनुवंशिक संस्कार तथा पूर्वजन्म से प्राप्त एवं इस जन्म में विकसित वृत्ति इन सभी सीमाओं के अनुसार ही वह भिन्न-भिन्न गुणों का अनुशीलन कर सकता है। उसकी शक्तियों के विकास में भी इसी प्रकार का तारतम्य आ जाता है। प्रकृति का गुरुत्वाकर्षण सर्वत्र संतुलित है। अत: एक गुण या शक्ति की न्यूनता या अधिकता होने पर उसके पूरक गुण या शक्ति उसी परिमाणमें कम या अधिक होते हैं । एक इन्द्रिय के कमजोर होने पर दूसरी अधिक बलवान होती है। एक के अधिक बलवान होने पर दूसरी मन्द हो जाती है। इसके उपरान्त मनुष्य की जो विशेषता एक दृष्टि से गुणरूप प्रतिभासित होती है वही अन्य दृष्टि से दोषरूप दिखाई देती है। लेकी ने अपने हिस्ट्री ऑफ युरोपीयन मोरल्स मे इसका एक उदाहरण दिया है कि जो उदार होता है वह खर्चीला दीखता है और जो मनुष्य करकसरपूर्वक खर्च करता है वह कंजूस दीखता है । इसी प्रकार स्त्री का प्रेम संकुचित है क्योकि वह अनन्य है, उसका मन अन्यत्र नहीं जाता यही उसकी शोभा है। नदी का प्रवाह जहाँ गहरा होता है वहाँ संकरा और जहाँ विस्तृत होता है वहाँ छिछला होता ही है। यही बात स्त्री के प्रेम के विषय में भी समझनी चाहिए। जिस प्रेम के बल से अन्तर का प्रत्येक तार हिल उठता है, वह प्रेम एक ही साथ कितने व्यक्तियों में बहाया जा सकता है ? इमरसन इसे " Law of Compensation" -क्षतिपूर्ति का नियम कहा है। इस विषय का उसका जो निबन्ध है वह स्याद्वाद विषयक ही है। उसमें उसने लिखा है कि हमारी शक्ति अपनी निर्बलता से ही उत्पन्न होती है। (Our strength grows out of our weakness) प्रत्येक मिठास में खटाई का अंश होता ही है और प्रत्येक बुराई में भलाई का पक्ष भी रहता ही है Every sweet hath its sour; every evil its good. फ्रासिस टोमसन ने भी कहा है कि माधुर्य में शोक और शोक में माधुर्य समाविष्ट ही The sweetness in the sad and the sadness in the sweet. यही समझ हमें बहुत आश्वासन देती है। इतना ही नहीं किन्तु इससे हमें दूसरों में जो दोष दिखाई देते हैं उनमें भी गुणों का दर्शन होने लगता है। ए. जी. गार्डिनर ने अपने एक निबन्ध में किसी एक फ्रेंच लेखक का उद्धरण दिया है। उसमें उसने लिखा है कि जोन और स्मिथ मिलते हैं तब वस्तुत: छ: व्यक्तियों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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