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________________ २०७ समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक (४) “अठारह पापस्थान ।" प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण का मतलब पीछे लौटना है एक स्थिति में जाकर फिर मूल स्थिति को प्रात करना प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण शब्द की इस सामान्य व्याख्या के अनुसार ऊपर बतलाई हुई व्याख्या के विरुद्ध अर्थात् अशुभ योग से हट कर शुभ योग को प्राप्त करने के बाद फिर से अशुभ योग को प्राप्त करना यह भी प्रतिक्रमण कहा जा सकता है। प्रतिक्रमण में दो शब्द हैं प्रति' और 'क्रमण' । शब्द शास्त्र की दृष्टि से इसका अर्थ होता है वापस लौटना; अथवा उल्टे लौटना । कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की है "प्रतीपं क्रमणम् प्रतिक्रमणम्, अयमर्थः शुभयोगेभ्योऽशुभयोगान्तरं क्रान्तस्य शुभेष्वेष क्रमणात् प्रतीपं क्रमणम् ।" इसी अर्थ का समर्थन भगवती आराधना में किया गया है "स्वकृतावशुभयोगदप्रतिनिवृत्तिः प्रतिक्रमणम्" अपने द्वारा किये गये अशुभयोग से परावर्त होना-लौटना अर्थात्-मेरा अपराध दुष्कृत मिथ्या हो, ऐसा कहकर पश्चात्ताप करना प्रतिक्रमण है। गोम्मटसार में प्रतिक्रमण का सुन्दर निर्वचन इन शब्दों में किया गया है ___ “प्रतिक्रम्यते प्रमादकृत दैवसिकादिदोषो निराक्रियते अनेनेति प्रतिक्रमणम्" प्रमादवश दैवसिक, रात्रिक आदि में लगे हुए दोषों का जिसके द्वारा निराकरण किया जाता है, उसे प्रतिक्रमण कहते हैं । आवश्यक सूत्र में तीन श्लोकों में प्रतिक्रमण की व्याख्या इस प्रकार की गई है प्रमादवश शुभयोग (स्वस्थान) से हटकर अशुभयोग (परस्थान) में जाने के बाद फिर से शुभयोग में (वहीं) लौट आना प्रतिक्रमण है।' अशुभ योग से निवृत्त होकर निःशल्यभाव १. स्वस्थानात्परस्थानं प्रमादस्यवशंगतः तत्रेव क्रमणं भूयः प्रतिक्रमणमुच्यते ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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