SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०६ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि (३) "चन्देसु निम्मलयरा, अहियं पयासयरा । सागरवरगम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु ॥" पारसी लोग नित्यप्रार्थना तथा नित्यपाठ में अपनी असली धार्मिक किताब 'अवस्ता' का जो-जो भाग काम में लाते हैं, वह खोरदेह अवस्ता' के नाम से प्रसिद्ध है। उस का मजमून अनेक अंशों में जैन, बौद्ध तथा वैदिक संप्रदाय में प्रचलित सन्ध्या के समान है। उदाहरण के तौर पर उस का थोड़ासा अंश हिन्दी भाषा में नीचे दिया जाता है। ___ अवस्ता के मूल वाक्य इस लिए उद्धृत नहीं किये हैं कि उस के खास अक्षर ऐसे हैं, जो देवनागरी लिपि में नहीं है। (१) “दुश्मन पर जीत हो।” (खोरदेह अवस्ता, पृ. ७) (२) “मैंने मन से जो बुरे विचार किये, ज़बान से जो तुच्छ भाषण किया और शरीर से जो हलका काम किया इत्यादि प्रकार के जो-जो गुनाह किये, उन सब के लिए मैं पश्चात्ताप करता हूँ।" (खो. अ., पृ. ७ ।) (३) “वर्तमान और भावी सब धर्मों में सब से बड़ा, सब से अच्छा और सर्वश्रेष्ठ धर्म 'जरथोश्ती' है । मैं यह बात मान लेता हूँ कि 'जरथोश्ती' धर्म ही सब कुछ पाने का कारण है।” (खो. अ., पृ. ९।) (४) “अभिमान, गर्व मरे हुए लोगों की निन्दा करना, लोभ, लालच, बेहद गुस्सा, किसी की बढ़ती देख कर जलना, किसी पर बुरी निगाह करना, स्वच्छन्दता, आलस्य, कानाफँसी, पवित्रता का भङ्ग, झूठी गवाही, चोरी, लूट-खसोट, व्यभिचार, बेहद शोक करना, इत्यादि जो गुनाह मुझ से जानते-अनजानते हो गये हों और जो गुनाह साफ दिल से मैं ने प्रकट न किये हों, उन सब से मैं पवित्र हो कर अलग होता हूँ।" (खो. अ., पृ. २३-२४) (१) “शत्रव पराङमुखाः भवन्तु स्वाहा ।" (बृहत् शान्ति ।) (२) "कारण काइयस्स, पडिक्कमे वाइयस्स वायाए । मणसा माणसियस्स, सव्वस्स वयाइयारस्स ॥' (वंदित्तु ।) (३) “सर्वमंगल मांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy