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________________ समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक १९१ सामायिक में आत्म- - विशुद्धि अधिक महत्त्वपूर्ण है। सावद्ययोग के पच्चक्खाण द्वारा नये अशुभ कर्मों को आने से पहले ही रोक लेना आवश्यक है। उसके द्वारा जो लोग समताभाव सहित आत्म-स्वरूप का ध्यान कर सकते हैं वे सामायिक का सविशेष फल पा सकते हैं । I आत्म- - विशुद्धि के लिए चित्त की विशुद्धि आवश्यक है। गृहस्थों का सामायिक विधिपूर्वक दो घड़ी का होता है। गृहस्थों के जीवन में चित्त विक्षुब्ध होने के अनेक प्रसंग और कारण होते हैं । इसलिए सामायिक - कर्ता को अपने चंचल चित्त को शांत और स्वस्थ करके ही सामायिक करने बैठना चाहिए। गृहस्थों का सामायिक शिक्षाव्रत है। इसलिए एक ही दिन में सब कुछ अच्छा हो जाएगा ऐसा कभी नहीं होता । प्रतिदिन के अभ्यास से ही उसमें उत्तरोत्तर प्रगति होती रहती है । तदुपरांत मन की शुद्धि रहे और बढ़े इसलिए गृहस्थों को कुछ बाह्य शुद्धियों का भी पालन करना चाहिए । सामायिक करने के लिए जो स्थान में गृहस्थ बैठता है वह स्थान स्वच्छ और जंतुरहित होना चाहिए। वह अन्य लोगों के आने-जाने में विक्षेपकर्ता न होना चाहिए और शांत, प्रमार्जित होना चाहिए। इससे स्वच्छ, शान्त और प्रसन्न वातावरण का निर्माण होता है । शक्य हो तो पूर्व या उत्तर दिशा में मुख रखकर बैठना चाहिए । यदि अनुकूल हो तो एक ही स्थान पर बैठना चाहिए। एक ही स्थान पर, करीबन नियत समय पर सामायिक में बैठने से वहाँ पवित्र वातावरण का निर्माण होता है और सामायिक के प्रारंभ से ही वह वातावरण मन के शुद्ध भावों का पोषक बना रहता हैं। स्थान के उपरांत आसन-वस्त्र, उपकरण आदि की शुद्धि का भी रक्षण होना चाहिए। मन की शुद्धि के लिए काया - शुद्धि आवश्यक है । ये सब बाह्य शुद्धियाँ हैं लेकिन वे अत्यंत उपयोगी हैं। गृहस्थों का सामायिक समय का वस्त्र परिधान भी संयमोचित, सुशोभन और अलंकार रहित होना चाहिए और शक्य हो तो साधु जैसा होना चाहिए । I सामायिक का महत्त्व जैनधर्म में सामायिक का विशेष महत्त्व है । आत्मसाधना की यह एक सीढ़ी है और ध्यान का प्रथम चरण है। शुद्ध जीवन-साधन के लिए सामायिक को जीवन का अङ्ग बना लेना आवश्यक माना गया है। इसीलिए सामायिक को शिक्षाव्रतों में प्रथम स्थान दिया गया है तथा साधु - जीवन अपनाने के पूर्व जिन ग्यारह सीढ़ियों पर चढ़ना आवश्यक है उनमें भी सामायिक का तीसरा स्थान है । आत्मा का साक्षात्कार करने और उसकी अनुपम विभूति के दर्शन करने का सामायिक एक चमत्कारिक प्रयोग है । यह बाह्य संसार के अशान्त वातावरण से दूर हटकर अन्तर्जगत के सुरभ्य नन्दन वन में विहार करने का प्रवेशद्वार है। अशान्ति की ज्वालाओं में जलते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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