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________________ १९० समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि गुरु महाराज या किसी ज्ञानी के सान्निध्य में सामायिक होता है तो उनके साथ शास्त्रचर्चा भी हो सकती है। और सामायिक में स्वयं ने कंठस्थ किये स्तोत्रों का मुखपाठ भी किया जा सकता है, अथवा नये सूत्र, स्तवन, सज्झाय आदि भी गिनी जा सकती है या मंत्रजाप भी किया जा सकता है। कई-कई शास्त्रकारों ने सामायिक के प्रारंभ में आत्म-शुद्धि और कर्म के लिए चार लोगस्स का काउसग्ग पढ़ने का सूचन किया है। जो लोग घर में सामायिक करते हैं उन्हें खास तौर से यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका चित्त घर की बातों में भटकने न लगे। इसके लिए सचेत रहना चाहिए। जो लोग सामायिक में बोलने की अनुज्ञा लेते है उन्हें अपने वचन-योग का संपूर्ण रक्षण हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए । अन्यथा सारा सामायिक गप-शप में व्यतीत हो जाने का पूरा संभव है। सामायिक में बोलने का निषेध नहीं है लेकिन सामायिककर्ता यदि इतने समय मौन धारण करें तो चित्त को अन्तर्मुख होने का अथवा तो चित्त को स्वाध्याय में केन्द्रित करने का अधिक अवकाश मिलता है। और सामायिक में किसका स्वाध्याय करना चाहिए यह पहले से निश्चित हो तो निरर्थक समय नहीं बिगड़ता । सामायिककर्ता की चिंतनधारा शुद्ध रहे और उसके मन का स्वाध्याय भी शुभ और शुद्ध रहे यह अधिक महत्त्वपूर्ण बात है। गृहस्थों को सुबह और शाम दोनों वक्त सामायिक करने का आदेश दिया गया है । सामायिक तो है दो घड़ी का साधुत्व । इसलिए जितने सामायिक करने की अनुकूलता प्राप्त हो उतने अधिक सामायिक करने चाहिए और सामायिक में साध्य किया गया समताभाव व्यक्ति खुद सामायिक में न हो उस समय भी चालु रहे इसलिए प्रयत्नशील रहना चाहिए । इसलिए तो कहा गया है : सामाईय पोसह संठिअस्स जीवस्स जाइ जो कालो । सो सफलो बोधव्वो सेसो संसारफलहेऊ । (सामायिक और पौषध में लीन जीव का जो काल व्यतीत होता है उसे सफल मानना। शेष समय संसारवृद्धि का निमित्त है।) . प्राचीन समय में तुंगीया नगर के श्रावक सामायिक करने में अत्यन्त उद्यमशील रहते थे और अपने जीवन के वर्ष जन्मतिथि के अनुसार नहीं गिनते थे परन्तु अपने अपने जितने सामायिक किये हो उन सबकी सामूहिक गिनती से गिनते थे और यदि कोई उनकी वय पूछे तो उसी के अनुसार कहते थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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