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________________ १६६ अहिवा समाई सम्मत्त नाण चरणाई तसु तेहिं वा । अयणं अओ समाओ स एव सामाइयं नाम ॥ कहा जाता है - समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि समानां मोक्षसाधनं प्रति सदृशसामर्थ्यानां सम्यग् दर्शनज्ञानचारित्राणां आय: लाभ । (मोक्ष- - साधन प्रति 'सम' अर्थात् समान ( एक ही प्रकार का ) सामर्थ्य जिनका है वे हैं ज्ञान, दर्शन और चारित्र । उन तीनों का आय (लाभ) वही होता है सामायिक | ) (४) सर्व जीवेषु मैत्री साम, साम्नो आयः लाभः सामाय स एव सामायिकम् । सर्व जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखना उसे साम कहते हैं। साम का आय अर्थात् लाभ वही है समाय । जिससे समाय हो वह सामायिक | ) तुलना : अहवां सामं मित्ती तत्थ अओ तेण वत्ति सामाओ । अहवा सामस्साओ लाओ सामाइयं नाम ॥ ( अर्थात् साम का अर्थ है मैत्री । उसका लाभ वह है सामायिक | ) (५) सम: सावद्य योग परिहार निरवद्योगोनुष्ठान रूप जीव परिणामः तस्य लाभ: तामः समायः स एव सामायिकम् (सावद्य योग अर्थात् पाप कार्य का परिहार और निरवद्य योग (अहिंसा दया-समताआदि का अनुष्ठान आचरण वही जीवात्मा का शुभ्र परिणाम (शुद्ध स्वभाव) वही सम है । वह सम का लाभ जिसमें होता है वह है सामायिक ।) (६) सम्मक् शब्दार्थ: सम शब्दः सम्यगमनं वर्तनं समयः स एव सामायिकम् । सम शब्द का अर्थ होता है सम्यक ( सच्चा अच्छा ) ! जिसमें सम का अयन होता है अर्थात् अच्छा, श्रेष्ठ आचरण होता है वह सामायिक कहा जाता है । Jain Education International - (७) समये कर्तव्यम् सामायिकम् । ( समय पर करने योग्य कार्य वही सामायिक | ) योग्य समय पर अहिंसा, दया, समता आदि जो उच्च कर्तव्य किये जाते हैं वे है For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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