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________________ भाषाटीकासमेतः। नाख्यमहासिना श्रुतिमता विच्छिद्य शीर्षत्रयं निर्मू ल्याहिमिमं निधिं सुखकर धीरोनुभोक्तुं क्षमः३०३॥ - ब्रह्मानन्दरूप एक उत्तम द्रव्यको महाबलवान् अहंकाररूप भयंकर सर्प सत्त्वरजस्तमरूप कोप युक्त तीन मस्तकसे संवेष्टन कर रक्षा करता है जो धीर पुरुष श्रुतियुक्त ज्ञानरूपी महाखड्गसे अहंकाररूप सर्पका त्रिगुणात्मक तीनों मस्तकको छेदनकर निर्मूल सर्पका नाश करैगा वही। धीर पुरुष ब्रह्मान्द महोदधिका परमसुख भोगनेमें समर्थ होगा ३०३॥ यावद्वा यत्किञ्चिद्विषस्फूतिरस्ति चेदेहे । कथमारोग्याय भवेत्तद्वद हंतापि योगिनो मुक्त्यै ॥३०४॥ जबतक थोड़ाभी विषका दोष शरीरमें रहता है तबतक वह शरीर आरोग्य नहीं होता तैसे जबतक योगीका अहंकार निःशेष न होगा तबतक मोक्ष होना कठिन है ॥ ३०४॥ अहमोऽत्यन्तनिवृत्त्या तत्कृतनानाविकल्पसंहृत्या: प्रत्यक्तत्त्वविवेकादिदमहमस्मीति विन्दते तत्त्वम्३०५ अहंकारकी अत्यन्त निवृत्ति होनेसे और अहंकारकृत नाना तरहका विकल्पके नाश होनेसे तथा आत्मतत्त्वके विवेक होनेसे यह मैं हूं ऐसा तत्त्व लाभ होता है ॥ ३०५॥ अहंकारे कर्तर्यहमिति मतिं मुश्च सहसा . विकारात्मन्यात्मप्रतिफलजुषि स्वस्थितिमुषि ॥ यदध्यासात्प्राप्ता जनिमृतिजरादुःखबहुला प्रतीचश्चिन्मूर्तेस्तव सुखतनोः संसृतिरियम् ३०६॥ हे शिष्य विकारात्मक और आत्मप्रतिबिम्ब संयुक्त और आत्मसत्ताको छिपाने वाला जो जगत्का कारण अहंकार है उससे अहं •hco.
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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