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________________ (८०) विवेकचूडामणिः। शरीर है, उसके कर्तृत्व भोक्तृत्व आदि धर्मको त्यागकर अखण्ड सुख स्वरूपको प्राप्त होजात्रो ॥ २९८ ॥ सन्त्यन्ये प्रतिबन्धाः पुंसः संसारहेतवो दृष्टाः। तेषामेवं मूलं प्रथमविकारो भवत्यहंकारः ॥२९९॥ परमात्माको संसार प्राप्त होनेका कारण बहुतसा प्रतिबन्धक दृष्ट हैं उन प्रतिबन्धकोंका मूल प्रथम विकार अहंकार है क्योंकि अहंकारहीसे सबका प्रादुर्भाव होता है ॥ २९९ ॥ यावत्स्यात्स्वस्य सम्बन्धोऽहंकारेण दुरात्मना । तावन लेशमात्रापि मुक्तिवार्ता विलक्षणा ॥ ३०॥ दुरात्मा अहंकारके साथ जबतक आत्मासे सम्बन्ध रहता है तबतक मुक्तिवार्ताका लेशमात्र भी होना विलक्षण है मोक्ष होना तो सर्वथा कठिन है ॥३० ॥ अहंकारग्रहान्मुक्तः स्वरूपमुपपद्यते । चन्द्रवद्विमलः पूर्णः सदानन्दः स्वयं प्रभुः ॥३०॥ जैसे राहुग्रहसे मुक्त होनेपर चंद्रमा प्रकाशमान परिपूर्ण अपने रूपको प्राप्त होता है तैसे आत्मा अहंकाररूप ग्रहसे मुक्त होनेपर निर्मल परिपूर्ण सदा आनन्द स्वरूप स्वयं प्रकाशक अपने स्वरूपको प्राप्त होता है३०१ यो वा पुरे सोहुमिति प्रतीतो बुद्धया प्रक्प्तस्तमसातिमूढया। तस्यैव निःशेषतया विनाशे ब्रह्मात्मभावः प्रतिबन्धशून्यः॥३०२॥ तमोगुणसे अतिमोहको प्राप्त हुई बुद्धिसे इस शरीरमें अहं ऐसा जो प्रतीत हुआ है उस प्रतीतका निःशेष विनाश होनेसे प्रतिबन्धकसे शून्य ब्रह्ममें आत्मभाव होता है ॥ ३०२॥ ब्रह्मानन्दनिधिर्महाबलवताऽहंकारघोराहिना संवेष्टया त्मनि रक्ष्यते गुणमयैश्चण्डैस्त्रिभिर्मस्तकैः । विज्ञा
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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