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________________ (८२) fadnaडामणिः | बुद्धिको हउसे त्याग करो क्योंकि उसी अहंकारका अध्यास आत्मामें पडने से व्यापक और चैतन्य मूर्ति सुखात्मक तुम्हें जन्ममरण जरा आदि अनेक दुःखयुक्त यह संसार भोगना पडता है ॥ ३०६ ॥ सदैकरूपस्य चिदात्मनो विभोरानन्दमूर्तेरनवद्यकीर्तेः । नैवान्यथा क्वाप्यविकारिणस्ते विनाहमध्यासममुष्य संसृतिः ॥ ३०७ ॥ जबतक अहंकारका अध्यास आत्मामें नहीं होता तबतक सदा एकरूप, चैतन्यात्मक, सर्वव्यापक, आनन्दमूर्ति और पवित्र कीर्ति विकारसे रहित तुमको संसारभावना नहीं होती अर्थात् अहंकारका अध्यास पंडनेही से तुमको संसार प्राप्त है अन्यथा संसार है नहीं ) ३०७ तस्मादहंकारमिमं स्वशत्रुं भोक्तुर्गले कण्टकवत्प्रतीतम् । विच्छिद्य विज्ञानमहासिना स्फुटं भुङ्क्ष्वात्मसाम्राज्यसुखं यथेष्टम् ॥ ३०८ ॥ - हे विद्वन् ! इस कारण से भोक्ता पुरुषके गलेमें कांटेके सदृश दुःखप्रद प्रतीयमान अहंकाररूप अपने शत्रुको विज्ञानरूप महाखडूग से छेदन करि आत्मसाम्राज्य सुखको यथेष्ट भोग करो ॥ ३०८ ॥ ततोऽहमादेर्विनिवर्त्य वृत्तिं संत्यक्तरागः परमार्थलाभात् । तूष्णीं समास्वात्मसुखानुभूत्या पूर्णात्मना ब्रह्मणि निर्विकल्पः ॥ ३०९ ॥ अहंकार के नाशहोने के बाद अहंकारकी जो कर्तृत्व भोक्तृत्व आदि वृत्ति है उसको त्याग करि परमार्थ वस्तुके लाभ होनेसे सम्यक् रागको भी त्याग कर और आत्मवस्तुका अनुभव होनेसे विकल्प रहित पूर्ण आत्मरूपसे मौन होकर सुखका आस्वादन करो ॥ ३०९ ॥ समूलकृत्तोऽपि महानहं पुनर्क्युले खितः स्याद्यदि
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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