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________________ एस धम्मो सनंतनो में रहने का आदी हो गया है। उसका शरीर मक्खियों से भिनभिना रहा है। वह उसको ही मिठास समझ रहा है, सौंदर्य समझ रहा है। अभी आत्मा उसके जीवन में जग सके, इसकी संभावना नहीं। दूसरा त्यागी है, हठयोगी है। तोड़-फोड़कर आ गया। नग्न बैठे हैं, उपवास कर रहे हैं, उकडूं बैठे हैं, शीर्षासन कर रहे हैं, भूखे हैं, प्यासे हैं, धूप में शरीर को जला रहे हैं, कांटों पर लेटे हैं, राख रमाए बैठे हैं, गरमी की भरी दुपहरी है, आग जलाए, धूनी रमाए बैठे हैं; सर्दी की रातें हैं, बर्फीली जगह में नंगे बैठे कंप रहे हैं। पात्र को नष्ट कर रहे हैं। पात्र बहुत नाजुक है। सोने से ज्यादा नाजुक है तुम्हारी देह। सोना भी इतना नाजुक नहीं; आखिर धातु धातु है। देह बड़ी नाजुक है। स्वर्णमंदिर है तुम्हारी देह। उसके साथ दो दुर्व्यवहार हो सकते हैं। एक तो दुर्व्यवहार है जो भोगी करता है, और दूसरा दुर्व्यवहार है जो त्यागी करता है। उस तीसरे को चुन लिया गया। वह योग्य था, क्योंकि वह समत्व को उपलब्ध था, वह मध्य में था। उसने न तो एक अति की, न दूसरी अति की। वह होशपूर्वक चीज को देखा और समझा। पात्र गंदा भी था, साफ भी किया। इतना साफ भी न किया कि पात्र नष्ट हो जाए, क्योंकि ऐसी सफाई का क्या फायदा! ऐसी औषधि का क्या फायदा कि मरीज ही मर जाए। बुद्ध का सारा संदेश मज्झिम निकाय का है, मध्यमार्ग का है। बुद्ध कहते हैं : न भोग, न त्याग, बीच में ठहर जाना है। ___अगर तुम बेहोश हो तो तुम भोगी रहोगे। अगर तुम बेहोशी से बहुत ज्यादा क्रोध में आ गए, प्रतिक्रिया में आ गए-बेहोशी तो न छोड़ी, संसार से भाग खड़े हुए-तो बेहोशी नया उपद्रव खड़ा कर लेगी। उपद्रव बदल जाएगा। अब तुम शरीर के दुश्मन हो जाओगे। पहले शरीर के पीछे दीवाने थे, अब शरीर के शत्रु हो जाओगे। पहले सोचते थे शरीर से स्वर्ग मिलेगा, अब सोचोगे कि शरीर को कष्ट देने से ही स्वर्ग मिलने वाला है। भाषा विपरीत हो गयी, लेकिन तुम जागे नहीं। कहीं बीच में खड़े होना है। जागरण मध्य में ले आता है, वह अति नहीं है। त्यागी तो ऐसा आदमी है जो विनाश को आतुर हो गया है, नाराज है। भोग से न पाया, इसलिए नाराज है। यह तो नहीं समझ रहा है कि मेरी भूल थी; यह समझ रहा है कि भोग की भूल थी। यह तो न समझा कि मैं शरीर के साथ जरूरत से ज्यादा जुड़ा था, शरीर का ही दुश्मन हो गया। छोटे बच्चों जैसा व्यवहार कर रहा है। दरवाजे से टकरा जाता है बच्चा, तो दरवाजे को मारता है। बालबुद्धि है, बालो! मूढ़ है, सोचता है, दरवाजे का कोई कसूर है। यह खतरनाक काम है। यह दोस्ती खतरनाक है बेहोशी से। ___मैं एक कहानी पढ़ता था। एक सूफी फकीर के पास एक भालू था। जंगल से गुजर रहा था और छोटा सा भालू का बच्चा मिल गया। बड़ा प्यारा था। उसने उसे 232
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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