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________________ अशांति की समझ ही शांति पाल लिया। वह बड़ा हो गया। वह उसकी सेवा भी करता था, भालू। एक दुपहरी की बात, फकीर बहुत थका-मांदा था, यात्रा से लौटा था, घर में कोई भी न था। बिना सूचना दिए घर आ गया था, कोई शिष्य मौजूद न था। भालू ही था। तो उसने भालू से कहा कि देख तू बैठ जा, किसी को भीतर मत आने देना, मुझे विश्राम करना है। कोई बाधा मुझ पर न पड़े, मैं बहुत थका हूं और एक चार-छह घंटे की नींद अत्यंत अनिवार्य है। तो भालू बैठ गया दरवाजे पर पहरा देने। फकीर सो गया। ___ एक मक्खी बार-बार आकर उसकी नाक पर बैठने लगी। उस भालू ने अपना पंजा उठाकर कई दफे उस मक्खी को उड़ाया। फिर आखिर भालू भालू था। उसको इतना गुस्सा आया! क्योंकि वह मक्खी बार-बार जिद्द करने लगी-मक्खियां बड़ी जिद्दी—जितना वह भगाने लगा वह वापस उसकी नाक पर बैठने लगी आकर। उसने एक गुस्से में इतना झपट्टा मारा कि नाक भी उसने अलग कर दी। फकीर की जब नाक कट गयी तब उसने अपने शिष्यों को कहा कि भालू की दोस्ती ठीक नहीं। ___ बेहोशी की दोस्ती भालू की दोस्ती है। पहले भोग में उलझाता है, फिर जब भोग से ऊबता है तो नाक तुड़वा डालता है। पहले शरीर के पीछे भटकाता है, फिर शरीर की दुश्मनी में भटकाता है; लेकिन भटकन जारी रहती है। संसार नहीं छोड़ना है, बेहोशी छोड़नी है। फरार का यह नया रूप है अगर हम लोग चिराग तोड़ के नूरे-कमर का जिक्र करें यह भी एक पलायन है। जिसको हम त्याग कहते हैं, भगोड़ापन है। और यह ऐसा ही मूढ़तापूर्ण है, जैसे कोई कहे कि हम तो दीए को तोड़ देंगे, तब हम रोशनी की चर्चा करेंगे। दीए को तोड़कर जैसे कोई चांद की रोशनी की चर्चा करने की जिद्द करे। दीए में भी चांद की ही रोशनी है। कितनी ही भिन्न हो, चांद की ही रोशनी है। शरीर में कितना ही भिन्न जीवन हो, तुम्हारा ही जीवन है; परमात्मा का ही आविष्ट भाव है। फरार का यह नया रूप है अगर हम लोग चिराग तोड़ के नूरे-कमर का जिक्र करें त्यागी वही कर रहा है। वह भगवान का जिक्र कर रहा है, लेकिन भगवान की देन को तोड़ता है। 'अलंकृत रहते हुए भी यदि कोई धर्म का आचरण करता है; शांत, दान्त और नियत ब्रह्मचारी है तथा प्राणिमात्र के लिए दंड का जिसने परित्याग कर दिया है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, वही भिक्षु है।' 'अलंकृत रहते हुए भी...।' राजसिंहासन पर बैठे-बैठे भी परमात्मा की उपलब्धि हो सकती है। 'अलंकृत रहते हुए भी...।' 233
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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