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________________ एस धम्मो सनंतनो थी, वह खो गयी। होश सुरक्षा है। बुद्ध ने कहा है, जैसे घर में दीया जलता हो तो चोर पास नहीं आते। सोचते हैं, कोई घर में होगा। पहरेदार घर के बाहर बैठा हो, तो चोर जरा दूर से निकल जाते हैं। लेकिन पहरेदार घर पर न हो, घर में दीया न जला हो, अंधकार छाया हो, तो चोर चुपचाप चले आते हैं। इसे छोड़कर जा कैसे सकते हैं! न कोई पहरेदार है, न घर में रोशनी है; मालिक कहीं बाहर है, घर अकेला पड़ा है। यह क्षण लूट लेने का है। __ बुद्ध ने कहा है, पाप तुम्हें घेरते हैं बेहोशी के क्षणों में। जब तुम होश भरे होते हो, कोई पाप तुम्हारे पास नहीं आता। पाप चोरों की तरह है। लेकिन ध्यान रखना सदा ही, इन सारे शब्दों के आधार से तुम यह मत सोचना कि बुद्ध निंदा कर रहे हैं; वे केवल सूचना कर रहे हैं—ऐसा है। यह केवल तथ्य का उदघोषण है, उपदेश है। वे तुमसे यह नहीं कह रहे हैं कि ऐसा तुम करो ही। क्योंकि बुद्ध ने कहा है कि मैं कौन हूं तुमसे कहने वाला कि तुम क्या करो? मैं तुमसे इतना ही कह सकता हूं कि मैंने कैसी-कैसी भूलें की और कैसे-कैसे कष्ट पाए; फिर मैंने कैसे-कैसे भूलों को छोड़ा, और कैसे-कैसे महासुख को उपलब्ध हुआ। मैं वही कह सकता हूं जो मेरे भीतर हुआ है। मैं तुम्हें अपनी कथा कह सकता हूं। सभी बुद्धपुरुषों ने जो कहा है, वह उनका आत्मकथ्य है। वे वहां से गुजरे जहां तुम हो, और वे वहां भी पहुंच गए जहां तुम कभी पहुंच सकते हो। उनका अनुभव दोहरा है। तुम्हारा अनुभव इकहरा है।। तुमने केवल संसार जाना, उन्होंने संसार के पार भी कुछ है, उसे भी जाना। संसार तो जाना ही; जितना तुमने जाना है, उससे ज्यादा जाना; उससे ज्यादा जाना तभी तो वे संसार के पार उठ सके। तुम्हारे जितना ही जाना होता-अधकचरा, अधूरा, कुनकुना–तो अभी लटके होते। उन्होंने त्वरा से जाना। उन्होंने संसार की पूरी पीड़ा भोगी। उन्होंने पीड़ा को इस गहनता से भोगा कि उस पीड़ा में फिर कोई भी सुख की संभावना न बची, वह बिलकुल राख हो गयी। वे पार गए। तुम जहां चल रहे हो, वहां तो वे चले ही; तुम जहां कभी चलोगे सौभाग्य के किसी क्षण में, वहां भी वे चले। उनकी बात तुमसे ज्यादा गहरी है, तुमसे बड़े अनुभव पर आधारित है। तो बुद्ध ने कहा है, हम इतना कह सकते हैं कि तुम जो भूलें कर रहे हो, ऐसा मत सोचना कि तुम्हीं कर रहे हो, हमने भी की थीं। तुम कुछ नयी भूलें नहीं कर रहे हो–सनातन हैं, सदा से होती रही हैं। तुम इस भूल में मत पड़ना कि तुम कुछ नया पाप कर रहे हो। सब पाप पुराने हैं। पाप पुराना ही होता है। तुम नया पाप खोज सकते हो, जरा सोचो? तुम कल्पना भी कर सकते हो किसी नए पाप की, जो किया न गया हो? सब बासा है। सब हो चुका है बहुत। दुनिया हर काम कर चुकी है, पुनरुक्त कर चुकी है, हर रास्ते पर चल चुकी है। बुद्धपुरुष इतना ही कहते हैं, हम चले हैं। तुम्हारी आंखों में आंसू हमें पता हैं, 114
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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