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________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत क्योंकि तुम्हारे पैरों में कांटे गड़े हैं। हमारे पैरों में भी वे ही कांटे गड़े रहे थे। लेकिन हमने संबंध का पता लगा लिया। तुम अपनी आंखों के आंसू और पैरों के कांटों में संबंध नहीं बना पा रहे हो। तुम सोचते हो, कोई सता रहा है, इसलिए रो रहे हो। तुम यह नहीं सोचते हो कि तुम गलत रास्ते पर चल रहे हो, जहां कांटे चुभ रहे हैं, आंखें आंसुओं से भर रही हैं। तुम सोचते हो, भाग्य की विडंबना है। संसार में दुख पाया जा रहा है। हमारी विधि में गलत लिखा है। हम करते तो सभी ठीक हैं, होता सब गलत है। बुद्धपुरुष इतना ही कहते हैं, ऐसा न कभी हुआ, न होने का नियम है। जब तुम ठीक करते हो, ठीक ही होता है। जब तुम गलत करते हो, तभी गलत होता है। फल से बीज को पहचान लेना। ____ 'छोटे सार्थ और महाधन वाला वणिक जिस तरह भययुक्त मार्ग को छोड़ देता है, या जिस तरह जीने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति विष को छोड़ता है, उसी तरह पापों को छोड़ दे।' . लेकिन ध्यान रखना, शर्त साफ है। अगर जीवन के महाधन को पाना हो, बचाना हो; जो तुम्हारे पास है, उसकी अगर सुरक्षा करनी हो, गंवाना न हो; जो अस्तित्व तुम्हें मिला ही है, अगर उसे विकृत न कर लेना हो; जो फूल खिल सकता है, जिसकी सुवास तुम्हारे प्राणों में भरी है और बिखर सकती है लोक-लोकांत में, अगर उसको ऐसे ही सड़ा न डालना हो, तो सुरक्षा करना, गलत रास्तों पर मत जाना। ___ अब इसमें फर्क समझो। धर्मगुरु कहता है, अगर पाप करोगे, दुख पाओगे। बुद्धपुरुष कहते हैं, अगर पाप करोगे, सुख से वंचित हो जाओगे। इस फर्क को खयाल में लेना। यह बहुत गहरा फर्क है। धर्मगुरु कहता है, पाप किया, नर्क में सड़ोगे; वह डरवा रहा है। वह तुम्हारे पाप के आकर्षण से बड़ा भय खड़ा कर रहा है, कि शायद भय के आधार पर तुम रुक जाओ। जैसे छोटा बच्चा आइस्क्रीम खाना चाहता है और मां कहती है कि आइस्क्रीम खाओगे तो बुखार चढ़ेगा, सर्दी-जुकाम होगा-घबड़ाती है उसको। जितना आइस्क्रीम खाने का सुख है, उससे बड़े दुख का भय बताती है। बुद्धपुरुष तुम्हें भयभीत नहीं कर रहे हैं। वे केवल जीवन के गणित का इंगित कर रहे हैं। वे यह नहीं कहते कि तुम दुख पाओगे। वे इतना ही कहते हैं कि सुख तुम्हें मिलना चाहिए था, मिला ही हुआ था, हाथ में ही आया हुआ था, उसे तुम गंवा दोगे। सुख का गंवा देना ही दुख है। इसे मुझे दोहराने दो। दुख का कोई विधायक रूप नहीं है, वह केवल सुख का अभाव है। जैसे अंधकार का कोई विधायक रूप नहीं है, वह केवल प्रकाश का अभाव है। धर्मगुरु कहते हैं, अगर पाप किया, अंधेरे में भटक जाओगे। बुद्धपुरुष कहते 115
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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