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________________ निष्क्रियता, नियति व शाश्वत नियम में वापसी 273 और फिर ऐसा भी नहीं है कि इस खोज में कुछ मिलता न हो । बहुत कुछ मिलता है; और तृप्ति बिलकुल नहीं होती। इस जगत का मजा यही है कि यहां जो भी चाहो, वह कोशिश करने से मिल ही जाता है। आज नहीं कल, कल नहीं परसों, कोशिश करने से मिल ही जाता है। और जब मिल जाता है, तब पता चलता है कि कोशिश व्यर्थ गई। मिल तो गया; कुछ मिला नहीं। जो आदमी अपनी सब आकांक्षाएं पा ले, उससे ज्यादा दुखी आदमी खोजना फिर मुश्किल है। ही थोड़ा सोचें। अगर परमात्मा एकदम प्रकट हो जाए आज इस भवन में, और आपसे कहे कि आपकी सब इच्छाएं पूरी हो गईं! आपसे ज्यादा दुखी आदमी इस पृथ्वी पर फिर दूसरे नहीं होंगे। क्या करिएगा? कहां जाइएगा फिर ? श्वास लेने की भी तो जरूरत न रह जाएगी। मरने के सिवाय कोई उपाय न बचेगा। यही होती है हालत | जो भी पा लेता है अपनी आकांक्षाओं को, वह अचानक पाता है कि अब कुछ बचा नहीं है। अब क्या करना है ? और तृप्ति बिलकुल नहीं होगी। सब मिल जाए, तो भी तृप्ति नहीं होगी। क्योंकि अभी तक हमने उसे तो खोजने की शुरुआत नहीं की है, जो नियति है। नियति का अर्थ होता है, डेस्टिनी का अर्थ होता है : जिसे पा लेने पर तृप्ति हो जाए। इस फर्क को ठीक से समझ लेना आप। उसे नियति नहीं कहते, जिसे आप पाना चाहते हैं। आप जिसे पाना चाहते हैं, वह नियति हो भी सकती है, न भी हो। पता तो तब चलता है, जब वह आपको मिल जाए। जब आपको मिल जाए, तब अगर आपको कोई तृप्ति न हो, तो समझना कि वह नियति नहीं थी । नियति का अर्थ ही यह है कि उस क्षण आप उस परम बिंदु पर पहुंच गए, जहां फिर कोई और इच्छा नहीं है, जहां फिर कोई खोज नहीं है, और तृप्ति है। जहां कोई भविष्य नहीं है, और परम तृप्ति है। लेकिन हम जो-जो चाहते हैं... । एक आदमी यश चाहता है, यश मिल जाता है एक दिन । और तब वह पाता है कि क्या है मेरे हाथ में, कुछ भी नहीं है। पास-पड़ोस के लोग मेरे संबंध में अच्छा सोचते हैं, बस यही मेरी मुट्ठी में है, और तो कुछ भी नहीं है। एक आदमी धन इकट्ठा कर लेता है। और एक दिन फिर धन को देखता है और पाता है कि पूरा जीवन चुका दिया इन टुकड़ों को इकट्ठा करने में। अब ये इकट्ठे हो गए। अब इनको गले में बांध कर फांसी ही लगाई जा सकती है, और कुछ नहीं किया जा सकता। बर्नार्ड शॉ ने लिखा है कि जिन लोगों ने कहा है कि नरक में बहुत सताए जाओगे, वे बहुत कल्पनाशील नहीं थे। बर्नार्ड शॉ ने कहा, अगर मेरे बस में हो नरक की तस्वीर देनी तो मैं दूंगा ऐसी तस्वीर कि जहां तुम जो चाहोगे वह उसी वक्त मिल जाएगा। इससे बड़ा नरक दूसरा नहीं हो सकता । तुमने चाहा नहीं कि मिला नहीं। इधर चाह और उधर पूरी हो गई। और तृप्ति बिलकुल नहीं होगी, क्योंकि हमारी कोई भी चाह नियति की चाह नहीं है। हम जो भी चाह रहे हैं, वह शायद हमारी चाह ही नहीं है। एक पड़ोस का आदमी एक कार खरीद लाता है, और आप में भी एक चाह पैदा हो जाती है कि यह कार मेरे पास भी हो जाए। एक पड़ोस का आदमी एक मकान बना लेता है, और आपकी भी चाह हो जाती है कि आप भी एक मकान बना लें। हम उधार जी रहे हैं, चाहें भी हमारी उधार हैं; वे भी हमारी अपनी नहीं हैं। नियति का अर्थ है, वह चाह जो आपके स्वभाव में है, जिसको आपने किसी से सीख नहीं लिया है। इसलिए आज भलीभांति, बाजार में जो व्यापार की कला को जानते हैं, वे भलीभांति जानते हैं कि वह पुराना अर्थशास्त्र का नियम गलत है कि जब लोगों में मांग होती है, तो ही तुम चीजें पैदा करो तो वे बिकेंगी। अब तो लोग भलीभांति जानते हैं कि लोगों की कोई मांग तो है ही नहीं, तुम पहले मांग पैदा करवाओ। इसलिए बाजार में दस साल बाद अगर उत्पत्ति आने वाली हो आपकी, आपका सामान आने वाला हो, तो दस साल पहले से एडवरटाइज करो । अभी बाजार में कोई चीज ही नहीं है। पहले वासना पैदा कर दो।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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