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________________ ताओ उपनिषद भाग २ दे रहा है। कल पता चल जाएगा, काम नहीं देगा। तब दूसरे असत्य से काम लेना पड़ेगा। परसों पता चल जाएगा, फिर तीसरे असत्य से काम लेना पड़ेगा। करीब-करीब सत्य का अर्थ होता है, जो असत्य अभी असत्य सिद्ध नहीं किया जा सका है। लेकिन यह स्वाभाविक है, यह स्वाभाविक है। क्योंकि जिस विषय से विज्ञान का संबंध है, वही बदलता चला जाता है। लाओत्से कहता है, एक शाश्वत नियम भी है, एक इटरनल लॉ भी है; वह नहीं बदलता। लेकिन उसके लिए फिर जो-जो बदलता है, उसे छोड़ कर खोजना पड़ेगा। जो भी बदलता है, उसे छोड़ कर खोजना पड़ेगा। इसलिए धर्म के नियम बदलते नहीं। पश्चिम में कई विचारकों को चिंता जन्मती है। बुद्ध ने कुछ कहा, कृष्ण ने कुछ कहा, या क्राइस्ट ने कुछ कहा। और आज तो हमारे मुल्क में भी बहुत लोगों को पश्चिम का खयाल महत्वपूर्ण मालूम होगा। कि बुद्ध को मरे .. ढाई हजार वर्ष हो गए, बुद्ध का सत्य आज भी सत्य कैसे हो सकता है? ठीक है, अगर सौ वर्ष पहले के विज्ञान का सत्य सौ वर्ष बाद सत्य नहीं रह जाता, दस वर्ष पहले का विज्ञान का सत्य दस वर्ष बाद सत्य नहीं रह जाता, तो ढाई हजार साल पहले हुए कृष्ण या बुद्ध या महावीर का सत्य कैसे सत्य रह जाएगा? और उनका कहना ठीक है; क्योंकि जो भी सत्य की तरह वे जानते हैं, वह रोज बदलता चला जाता है। लेकिन उन्हें कृष्ण के सत्य का कोई पता नहीं है। उन्हें लाओत्से के सत्य का कोई पता नहीं है। लाओत्से उस सत्य की ही बात कर रहे हैं, जहां परिवर्तित होने वाला सब छोड़ दिया गया है। वह शर्त पहले ही पूरी कर दी गई है। जो बदलने की धारा है, उस धारा को छोड़ ही दिया गया है। धर्म से उसका कोई लेना-देना नहीं है। धर्म का तो उससे लेना-देना है, जिसमें यह बदलती धारा बह रही थी। बादलों से कोई प्रयोजन नहीं है; आकाश की खोज है, जिसमें बादल बनते हैं और बिगड़ते हैं। . निश्चित ही, कोई आदमी कह सकता है कि बादल सुबह देखो, दोपहर वही नहीं रह जाते, सांझ वही नहीं रह जाते। और एक से बादल तो दुबारा कभी देखे नहीं जा सकते। यह तुम किस आकाश की बात कर रहे हो? जब बादल बदल जाते हैं, तो आकाश भी बदल जाता होगा। तुम उसी आकाश की बात किए चले जाते हो। लेकिन आकाश सनातन है। जो भी बदलता है, वह आकाश में है। लेकिन आकाश नहीं है वह। जो भी बदलता है, वह आकाश में ही बदलता है; पर आकाश नहीं बदलता। इस आकाश की जो खोज है, इस इनर स्पेस की, अंतर-आकाश की जो खोज है, इसे लाओत्से कहता है, जब भी कोई पा लेता है, तो उसने अपनी नियति पा ली। उसने पा लिया, जिसे पाने पर सब मिल जाता है और जिसे न पाने पर कुछ भी नहीं मिलता। उसने अपना घर पा लिया। उसने खोज लिया घर, अब सरायों में ठहरने की जरूरत न रही। अब वह अपने घर आ गया है। अब कहीं जाने का कोई सवाल नहीं है। अब वह जगह मिल गई, जिसकी तलाश थी। हर आदमी तलाश में है, पता हो उसे, न हो पता। हो सकता है, यह भी पता न हो, क्या खोज रहा है। सच तो यही है कि पता नहीं है कि क्या खोज रहे हैं। अगर कोई आदमी आपसे पूछे कि कहें ईमानदारी से, क्या खोज रहे हैं? तो आपको बड़ी बेचैनी मालूम होगी। और इसीलिए इस तरह के अशिष्ट प्रश्न कोई किसी से पूछता नहीं, क्योंकि ये बेचैनी पैदा करते हैं। और अगर कोई जोर से पूछता ही चला जाए, तो थोड़ी देर में घबड़ाहट शुरू हो जाएगी। आप क्या खोज रहे हैं? दूसरे दिन सुबह बिस्तर से उठना मुश्किल हो जाएगा-किसलिए उठ रहे हैं? क्या है खोज? कुछ पता नहीं है, क्या खोज रहे हैं। लेकिन खोज जरूर रहे हैं कुछ-कुछ अनजान। कोई चीज धकाए चली जाती है। 272
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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