SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्रांति से समता व मध्य मार्ग से मुक्ति खयाल नहीं कि वह इसीलिए विनम्र हो रहा है कि सम्मान मिले। सम्मान की आकांक्षा अगर विनम्र बना दे, हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर खड़ा करवा दे...। राजनीतिक नेतागण द्वार-द्वार खड़े रहते हैं। उनकी विनम्रता गहन अहंकार की तृप्ति की दौड़ है। तो एक तो विनम्रता ऐसी है, जिसे विनम्रता की पवित्रता का, श्रेष्ठता का बोध है। दूसरी विनम्रता की लाओत्से बात कर रहा है। दूसरी विनम्रता ऐसी है, जिसे अपनी पवित्रता का, अपनी श्रेष्ठता का, अपनी साधुता का भी कोई पता नहीं। इसलिए लाओत्से ने प्रतीक उपयोग किया है : मटमैले जल की भांति, मडी वाटर। कहीं भी बह रहा है, किसी भी जमीन पर, मिट्टी से भरा हुआ। कोई बोध नहीं है पवित्रता का, श्रेष्ठता का, गंगाजल का। संत को अगर बोध हो कि मैं संत हूं, तो वह संत नहीं रहा। लेकिन यहीं तरकीब है। तो आप संत के पास जाएं और उससे कहें कि आप बहुत बड़े महात्मा हैं, तो वह कहेगा: नहीं, मैं तो आपके पैरों की धूल हूं। उसको भी पता है। खेल के नियम सभी को पता हैं। आपको भी पता है कि संत अगर खुद कहे कि हां, मैं संत हूं, तो कहेंगेः क्या संत रहा! उसे भी पता है कि अगर मैं कहं कि हां, मैं संत है, तो यह आदमी दुबारा नहीं आएगा। वह कहता है: मैं संत? मैं कहां। मझ सा पापी तो है ही नहीं। जो मैं खोजने निकला, तो मुझ सा पापी मैंने कोई भी नहीं पाया। तब आप चरण छूकर घर लौटते हैं कि संत उपलब्ध हुआ। लेकिन ये एक ही खेल के दो हिस्से हो सकते हैं। लाओत्से का संत यह भी नहीं कहेगा कि मैं सबसे भला हूं और यह भी नहीं कहेगा कि मैं सबसे बुरा हूं। क्योंकि ये दोनों ही अहंकार की घोषणाएं हैं। लाओत्से का संत अघोषित रहेगा। वह कुछ भी नहीं कहेगा। अपने संबंध में कोई वक्तव्य नहीं देगा। शायद आप उसके पास से बहुत निराश लौटें। क्योंकि दो में से कोई भी बात आपके मन को तृप्ति देती। वह कह देता कि हां, मैं महान संत हूं, तो भी आप कुछ निर्णय करके लौटते। वह कह देता कि मैं तो कुछ भी नहीं, ना-कुछ हं, नाचीज हूं, तो भी आप कुछ निर्णय लेकर लौटते। लेकिन लाओत्से का संत कुछ भी नहीं कहेगा। क्योंकि लाओत्से कहता है कि स्वयं के बाबत कोई भी बोध विपरीत के कारण होता है। इसलिए कोई बोध नहीं होगा। ___लाओत्से से खुद कोई पूछने आया है कि सुना है हमने, आप परम ज्ञानी हैं ! लाओत्से सुनता रहा। उस आदमी ने कहा, कुछ कहिएगा नहीं? लाओत्से चुप रहा। और तभी एक और आदमी आया और उसने लाओत्से से कहा कि सुना है हमने कि तुम अज्ञान का प्रसार कर रहे हो! ऐसी बातें कह रहे हो, जिससे जगत भ्रष्ट हो जाए और भटक जाए! लाओत्से सुनता रहा। उस आदमी ने कल, कुछ कहिएगा नहीं? लाओत्से ने कहा कि तुम दोनों आपस में बैठ कर तय कर लो। यह आदमी कहता है कि महा ज्ञानी और तुम कहते हो महा अज्ञानी। मुझे कुछ भी पता नहीं। तुम दोनों जानकार हो, तुम दोनों मिल कर तय कर लो। और मुझ पर कृपा करो। मुझे हिसाब के बाहर रखो। तुम दोनों काफी जानकार हो। जिन बातों का मुझे पता नहीं, उनका तुम्हें पता है। तुम निर्णय कर लो। और मुझसे पूछने की कोई जरूरत नहीं है। यह अघोषित व्यक्तित्व संतत्व है। अब हम इस सूत्र को समझने की कोशिश करें। 'इस अशुद्धि से भरे संसार में कौन विश्रांति को उपलब्ध होता है? जो ठहर कर अशुद्धियों को बह जाने देता है।' इस संबंध में बुद्ध की एक कहानी मुझे सदा प्रिय रही है, वह मैं आपसे कहूं। यह सूत्र उस पूरी कथा का शीर्षक है। 'हू कैन फाइंड रिपोज इन ए मडी वर्ल्ड ? बाई लाइंग स्टिल इट बिकम्स क्लियर।' 229
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy