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________________ ताओ उपनिषद भाग २ बुद्ध एक पहाड़ के पास से गुजरते हैं। धूप है तेज। गर्मी के दिन। उन्हें प्यास लगी। आनंद से उन्होंने कहा, आनंद, तू पीछे लौट कर जा; अभी-अभी हमने एक नाला पार किया है, तू पानी भर ला! आनंद भिक्षा-पात्र लेकर पीछे गया। कोई दो फर्लाग दूर वह नाला था। जब बुद्ध और आनंद वहां से निकले थे, तो नाला बड़ा स्वच्छ था। जलधार धूप में मोतियों जैसी चमकती थी। छिछला था नाला; कंकड़-पत्थरों पर शोर-गुल की आवाज करता बहता था। पहाड़ी नाला था; स्वच्छ, ताजा जल उसमें था। लेकिन जब आनंद वापस पहुंचा, तो देखा कि कुछ बैलगाड़ियां उसके सामने ही उसमें से गुजर रही हैं और नाला गंदा हो गया। धूल और कीचड़ ऊपर उठ आई। सूखे पत्ते दबे जो जमीन में पड़े थे, वे फैल गए। सारा पानी गंदा हो गया; पीने योग्य न रहा। आनंद वापस लौटा। आनंद के मन में हुआः बुद्ध इतने महा ज्ञानी हैं, उन्हें यह भी पता न चला किं जब मैं जाऊंगा, तो दो गाड़ियां वहां से निकल जाएंगी, सब पानी गंदा हो जाएगा! आनंद वापस लौटा और उसने बुद्ध से कहा कि वह पानी गंदा हो गया है। गाड़ियां उस पर से गुजर गईं। अब वह पीने योग्य नहीं है। तो मैं आगे जाता हूं। तीन मील दूर आगे नदी है। वहां से पानी ले आऊं। बुद्ध ने कहा कि नहीं, पानी तो उसी नाले का मुझे पीना है। तू वापस जा! आनंद को बड़ी कठिनाई हुई कि पहले तो समझ लो कि न जानते हुए बुद्ध ने भेजा था; अब जान कर! आनंद को ठिठकते देख कर बुद्ध ने कहा, तू जा भी! आनंद फिर गया। लेकिन उस पानी को पीने के योग्य माना नहीं जा सकता था। पानी बिलकुल गंदा था। आनंद बड़ी मुश्किल में पड़ा। उस गंदे पानी को बुद्ध के पीने के लिए लाए भी कैसे? फिर वापस लौटा; बुद्ध से कहा, क्षमा करें, वह पानी लाने योग्य बिलकुल नहीं है। बुद्ध ने कहा, तू एक बार और मेरी मान और जा! आनंद का मन हुआ कि इनकार कर दे। लेकिन बुद्ध ने इतने अनुनय के स्वर से कहा कि वह फिर वापस लौटा। जाते वक्त बुद्ध ने उससे कहा, आनंद, और अब लौटना मत। किनारे पर बैठ रहना। जब तक पानी तुझे पीने योग्य न लगे, तब तक बैठे रहना। आनंद गया। किनारे पर बैठ गया। बैठ कर देखता रहा, देखता रहा, देखता रहा। थोड़ी देर में सूखे पत्ते बह गए, मिट्टी के कण नीचे बैठ गए, धूल हट गई। पानी पुनः स्वच्छ हो गया। पानी भर कर आनंद नाचता हुआ लौटा। बुद्ध के चरणों में गिर कर उसने कहा कि तुम्हारी अनुकंपा अपार है! क्या तुमने मुझे उस पानी की धार से कुछ संदेश दिया? मैं नासमझ क्या-क्या सोचता रहा! मुझे समझ आ गया उस नदी के, उस झरने के किनारे बैठ कर कि यह मन भी ऐसा ही गंदगी से भरा है। क्या मन के किनारे भी हम ऐसे ही बैठ कर प्रतीक्षा करें, तो यह गंदगी बह जाएगी? बुद्ध ने कहा, इसीलिए तुझे तीन बार मुझे वापस भेजना पड़ा। लाओत्से का सूत्र उसका शीर्षक है। हू कैन फाइंड रिपोज इन ए मडी वर्ल्ड? इस मटमैली, गंदी दुनिया में, कीचड़ से भरी दुनिया में, कौन पा सकेगा विश्रांति? बाई लाइंग स्टिल इट बिकम्स क्लियर। कुछ और करने की जरूरत नहीं है। इस संसार में प्रतीक्षा से शांत होकर बैठ जाना काफी है। सब स्वच्छ हो जाता है अपने से। आनंद से बुद्ध ने बाद में पूछा कि आनंद, तुझे कभी ऐसा उस झरने के किनारे नहीं हुआ कि कूद पडूं और साफ कर दूं? आनंद ने कहा, हुआ ही नहीं, मैंने किया भी। लेकिन पानी और भी गंदा हो गया था। मन के साथ हम भी सब यही करते हैं। कूद कर साफ करने की कोशिश करते हैं। जबर्दस्ती मन को साफ करने की कोशिश करते हैं। हमारी जबर्दस्ती, हमारा झरने में उतर जाना पानी को और गंदा कर जाता है। इसलिए तथाकथित धार्मिक आदमी जो मंदिरों में बैठ कर ध्यान और पूजा और प्रार्थना करते रहते हैं, कहीं उनके मन में झांकने का आपको अवसर मिले, तो आपको पता चले कि वे मंदिर में जरूर बैठे हैं, मंदिर से उनके मन का कोई भी संबंध नहीं है। मन उनका इतनी गंदगी से इतना भर गया है जितना कि दुकान पर बैठ कर भी नहीं भरता। क्योंकि दुकान पर भी एक एकाग्रता रहती है धन पर, मंदिर में उतनी एकाग्रता भी नहीं रह जाती। और क्यों नहीं रह जाती? 230
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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