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________________ 296. विरले साधक धम्मंपिह सद्दतया, दुल्लभया काएण फासया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2571] - उत्तराध्ययन 10/20 उत्तम धर्म में श्रद्धा होने पर भी मन-वचन और काया से उसका आचरण करनेवाले साधक निश्चय ही दुर्लभ है । वे तो विरले ही होते हैं । 297. प्रमाद-त्याग से घाणबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2571] - उत्तरा. 10/23 घ्राणेन्द्रिय का सब बल क्षीण होता जा रहा है, इसलिए हे गौतम ! क्षणभर के लिए भी प्रमाद उचित नहीं है। 298. मा प्रमाद से जिब्भबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2571] - उत्तराध्ययन 1024 रसनेन्द्रिय का सब बल क्षीण होता जा रहा है। अतएव हे गौतम ! क्षणभर के लिए भी प्रमाद उचित नहीं है। 299. प्रमाद नहीं से फासबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2571] - उत्तराध्ययन 10/25 स्पर्शेन्द्रिय का सब बल क्षीण होता जा रहा है। अतएव हे गौतम ! क्षणभर के लिए भी प्रमाद मत कर । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 132
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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