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________________ 7. णिस्सेसदोसरहिओ [ ( णिस्सेस) वि- (दोस) - ( रहिअ ) भूक 1 / 1 अनि ] केवलणाणाइपरम- [ (केवलणाण) + ( आइपरम विभवजुदो णिस्सेसदोसरहिओ केवलणाणाइपरमविभवजुदो । सो परमप्पा उच्चइ तव्विवरीओ ण परमप्पा ॥ सो परमप्पा उच्चइ तव्विवरीओ ण परमप्पा विभवजुदो )] [(केवलणाण) - (आइ) - (परम) वि - (विभव) - (जुद) भूकृ 1/1 अनि] (त) 1 / 1 सवि ( परमप्प ) 1 / 1 (उच्च) व कर्म 3 / 1 अनि ( तव्विवरीअ ) 1 / 1 वि अनि अव्यय ( परमप्प ) 1/1 समस्त दोषों से रहित केवलज्ञान आदि परम वैभव से युक्त वह तीर्थंकर कहा जाता है उसके विपरीत नहीं तीर्थंकर अन्वय- णिस्सेसदोसरहिओ केवलणाणाइपरमविभवजुदो सो परमप्पा उच्चइ तव्विवरीओ परमप्पा ण । अर्थ - (जो ) (उपरोक्त ) समस्त दोषों से रहित (है) (और) केवलज्ञान आदि परम वैभव से युक्त (है), वह तीर्थंकर कहा जाता है। उसके विपरीत तीर्थंकर नहीं (होते हैं) । नियमसार (खण्ड-1) (17)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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