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________________ 6. छुहतण्हभीरुरोसो रागो मोहो चिंता जरा रुजा मिच्चू। सेदं खेद मदो रइ विम्हिय णिद्दा जणुव्वेगो ॥ राग मोह जरा रोग मिच्चू खेद छुहतण्हभीरुरोसो [(छुहा-छुह) - क्षुधा, तृषा, भयभीत, (तण्हा-तण्ह)-(भीरु) वि- रोष (रोस) 1/1] रागो (राग) 1/1 मोहो (मोह) 1/1 चिंता (चिंता) 1/1 चिंता (जरा) 1/1 बुढ़ापा रुजा (रुजा) 1/1 (मिच्चु) 1/1 मृत्यु सेदं (सेद) 1/1 . पसीना (खेद) 1/1 खेद मदो (मद) 1/1 मद (रइ) 1/1 रति *विम्हिय (विम्हिय) 1/1 वि चकित णिद्दा (णिद्दा) 1/1 निद्रा जणुव्वेगो [(जण)+(उव्वेगो)] [(जण)-(उव्वेग) 1/1] जन्म और अरति . अन्वय-छुहतण्हभीरुरोसो रागो मोहो चिंता जरा रुजामिच्चू सेदं खेद मदो रइ विम्हिय णिद्दा जणुव्वेगो। अर्थ- क्षुधा, तृषा, भयभीत (होना), रोष, राग, मोह, चिंता, बुढ़ापा, रोग, मृत्यु, पसीना, खेद, मद, रति, चकित (होना), निद्रा, जन्म और अरति (ये अठारह दोष) (हैं)। * छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'छुहा' का 'छुह' तथा 'तण्हा' का 'तण्ह' किया गया है। यहाँ अनुस्वार का आगम हुआ है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 5, 6.1.ii) प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 3, (4 क) प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) (16) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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