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________________ 8. तस्स मुहुग्गदवयणं पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं । आगममिदि परिकहियं तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था ॥ सुद्धं आगममिदि तस्स (त) 6/1 सवि उसके मुहुग्गदवयणं' [(मुह)+(उग्गदवयणं)] [(मुह)-(उग्गद) भूकृ अनि- मुख से निकला हुआ (वयण) 1/1] वचन पुव्वावरदोसविरहियं [(पुव्वावर) वि-(दोस) सब प्रकार के (विरहिय) 1/1 वि (पूर्वापर) दोषों से मुक्त (सुद्ध) 1/1 वि शुद्ध [(आगम)+ (इदि)] आगमं (आगम) 1/1 आगम इदि (अ) = अतः परिकहियं [(परि) अ (निरर्थक प्रयोग)- कहा गया (कह) भूकृ 1/1] (त) 3/1 सवि उसके द्वारा • अव्यय कहिया (कह) भूकृ 1/2 कहे गये हवंति (हव) व 3/2 अक होते हैं (तच्चत्थ) 1/2 तत्त्वार्थ अतः तेण तच्चत्था अन्वय- तस्स मुहुग्गदवयणं पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं आगममिदि परिकहियं तेण कहिया दु तच्चत्था हवंति । अर्थ- उस (आप्त) के मुख से निकला हुआ वचन (जो) सब प्रकार के (पूर्वापर) दोषों से मुक्त (हैं) अतः शुद्ध (है) (इसलिये) (वह) आगम कहा गया (है) (और) उस (आगम) के द्वारा कहे गये ही तत्त्वार्थ (द्रव्य) होते हैं। 1. 2. प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 3, (4 क) 'पाइय-सद्द-महण्णवो' कोश (18) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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