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________________ तरंगवती पुत्रों के बाद मनौती मानने से प्राप्त मैं सबसे छोटी थी । कहा जाता है मेरी माता की सगर्भावस्था सुखपूर्वक और उसकी दोहद की पूर्ति के साथ बीतने पर सिंह के स्वप्नदर्शन के साथ मेरा जन्म हुआ और दाइयों ने मेरी यथोचित देखभाल की। कहा जाता है कि मित्रों एवं बाँधवों को अत्यंत आनंद हुआ और मातापिताने बधाई का उत्सव मनाया। कहते हैं कि यथाक्रम से मेरा संपूर्ण जातकर्म भी संपन्न किया गया और पिताजी के साथ परामर्श कर मेरे भाइओं ने मेरा नामकरण करते हुए कहा - 'जलसमूह से भरपूर और टेढी-तिरछी तरंगों से व्याप्त ऐसी यमुना ने मनौती मानने पर प्रसन्न होकर इसे दी है इसलिए इसका नाम "तरंगवती" तय हो ।' बचपन कहते हैं कि मैं मुट्ठी बन्द रखती, अवकाश में पैर उछालती बिछौने में यदि चित सुलाई जाती तो अपने आप उलटकर औंधी हो जाती थी। इसके बाद अंकधात्री और क्षीरधात्री ने एक बार खेलाते-खेलाते मुझे विविध मणिजडित फर्शबन्द भूमि पर पेट के बल सरकते सिखाया। ___हे गृहिणी, कहा जाता है कि मेरे लिए खिलौनों में सोने की खंजडी, बजाने के घूघरे और सोने के बहुत से गोले थे । सदा प्रसन्न और हँसमुख मैं, 'यहाँ आ, यहाँ आ' बोलते भाइओं की गोद में खेलती और बारबार खिलखिलाकर हँस उठती । कहते हैं कि लोगों का अनुकरण करने के लिए मैं आँख और हाथ से चेष्टाएँ करती और जब मुझे बुलाते तब मैं अस्पष्ट, मधुर उद्गार तुतलाती । मातापिता, भाइओं और स्वजनों द्वारा एक की गोद से दूसरे की गोद उठा ली जाती मैं । कुछ समय बीतने पर मैं ठुमक ठुमक कदम भरने लगी। . बिना समझे और मधुर 'ताता' बोलती रहती मैं कहा जाता है बाँधवों की प्रीति घनीभूत कर लेती थी। लोगों से मुझे विदित हुआ कि चूडाकर्म का संस्कार सम्पन्न हो जाने पर मैं दासियों के झुंड से परिरक्षित यथेच्छ घूमती-फिरती थी। सोने की गुडियों से एवं रेत के घरौंदे बनाकर मैं खेलती और इस तरह सहेलियों के संग मैंने बालक्रीडा का मजा उठाया । Poसा
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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