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________________ तरंगवती युद्ध समय के उसके पराक्रम और प्रताप की प्रसिद्धि थी। वह मित्रों का कल्पवृक्ष, शत्रुवन का दावानल, कीति का आवास था । वह परिराजित से सुसंकुलित और श्लाघ्य था । कांति में वह मानो पूनम का चाँद, स्वर में हंस, गति में नरसिंह था । अश्व, गज, रथ और सुभट अर्थात् चतुरंगिनी सेना के बाहुल्यवाले हैहयकुल में उसका जन्म हुआ था। _उत्तम कुल, शील और रूपसंपदायुक्त वासवदत्ता उसकी पत्नी थी : मानो महिला के सब गुणों की संपत्ति, और रतिसुख की संप्राप्ति । नगरसेठ श्रेष्ठियों की पंक्ति में जिसका आसन सर्वप्रथम लगता ऐसे नगरश्रेष्ठी ऋषभसेन उस राजा का मित्र और सब कार्यों में साक्षी था । वह अर्थशास्त्र में निपुण और उसके तत्त्वार्थ का जानकार था। अन्य सब शास्त्रों में भी वह निष्णात था । पुरुषोचित सब गुणों और व्यवहारों के वह निकष समान था । वह सौम्य गुणों का बसेरा, मित मधुर, प्रशस्त और समयोचित बात करनेवाला, मर्यादापूर्ण चरित्रवाला और विस्तीर्ण व्यापार जानने वाला था। ____ सम्यग्दर्शन के कारण उसकी बुद्धि विशुद्ध हो चुकी थी। प्रवचन में वह नि:संशय श्रद्धान्वित था । ज़िनवचन का श्रावक और शुचि मोक्षमार्ग का अनुयायी था। वह मोक्ष के विधान का ज्ञाता था; जीव और अजीव का उसे ज्ञान था। विनय में वह दत्तचित्त, निर्जर संवर और विवेक का भारी प्रशंसक, पुण्य एवं पाप की विधि से परिचित और शीलव्रत का उत्तुंग प्राकार-सा था । ... वह अपने कुल और वंश का दीपक और दीनदुखियों का शांतिगृह, गृहलक्ष्मी का मध्यावास, गुणरत्नों का भंडार और वीर था । तरंगवती का जन्म, बचपन, तारुण्य तरंगवती का जन्म हे गृहस्वामिनी, मैं उसकी लाडली पुत्री के रूप में पैदा हुई थी; आठ
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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