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________________ ११४ तरंगवती पवित्र वटवृक्ष वहाँ मैंने एक देवमंदिर देखा । वह चूने की सफेदी से पूता होने से जलहीन बादलसमूह जैसा गौर लगता था। उसका आकार-प्रकार सिंहबैठक जैसा था और वह उत्तुंग था। वहाँ सौ स्तंभों पर स्थापित सुश्लिष्ट लकडीकामवाला सुंदर, विशाल एवं पर्याप्त अवकाशयुक्त प्रेक्षागृह था । उसके आगे के भाग में अनेक चित्रभातों के सुशोभनयुक्त, चैत्ययुक्त ऊँची व्यासपीठ और पताकायुक्त वटवृक्ष को मैंने देखा । . ___ उस वृक्ष को छत्र, चामर एवं पुष्पमालाएँ समर्पित किये हुए थे और चंदनलेपनभी किया गया था । वह वटवृक्ष उद्यान के अन्य वृक्षों का आधिपत्य करता था । ऋषभदेव का चैत्य देवमंदिर की प्रदक्षिणा करके मैने कोमल पत्रशाखाओं और पर्णघया की सुखद छायायुक्त उस वटवृक्ष को प्रणिपात किया । इतना करने के बाद मैंने वहाँ के लोगों से पूछा, "इस उद्यान का नाम क्या है ? किस देव की यहाँ सुचारु रूप से पूजा हो रही है ? बहुत कुछ निरीक्षण करने पर भी मुझे यहाँ भवनसमूह कहीं आसपास दिखाई नहीं देता। इसके अतिरिक्त मुझे यह उद्यान इससे पूर्व कभी देखने में नहीं आया । - __इससे उन्होंने जाना कि मैं अभ्यागत हूँ तब उनमें से एक व्यक्ति ने मुझे बताया, "इस उद्यान का नाम शकटमुख है। अनुश्रुति यह है कि इक्ष्वाकु वंश का राजवृषभ, वृषभ समान ललित गति से चलनेवाला वृषभदेव भारतवर्ष में पृथ्वीपति था । उस हिमवंत वर्ष के स्वामी ने मंडलों रूप वलययुक्त, गुणों से समृद्ध और सागररूप कटिमेखला मंडित पृथ्वीरूप महिला का त्याग किया था। गर्भवास और पुनर्जन्म से भयभीत होकर पुनः जन्म लेने से बचने के लिए उसने उद्यत होकर असामान्य, पूर्ण एवं अनुत्तर पद की प्राप्ति की कामना की। लोकश्रुति है कि सुर-असुरों से पूजित ऐसे उन्हें वे जब इस वटवृक्ष के
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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