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________________ ११० तरंगवती था, तलवारों के प्रहार एवं घावों के चिह्नों से जिसका बदन खुरदुश हो गया था, जो पाप का भरपूर सेवन करता था, जो पराये धन का विनाशक, साहसिक, और चोरों का आश्रयदाता था और सुभट के रूप में जिसकी शक्ति की बहुत ख्याति थी ऐसा शक्तिप्रिय नाम का चोर उनका नायक था । अपने भुजबल के पराक्रम से सुभट की उत्तमता प्रगट करनेवाला यशस्वी सेनापति का पद उसने प्राप्त किया था । मैंने उसका आश्रय लिया। उसने मेरे साथ बातचीत की और मुझे स्वीकार किया। अन्य सुभटों ने भी मेरा सम्मान किया और मैं मान-सम्मानपूर्वक वहाँ सुख से रहने लगा। व्याध की क्रूरता वहाँ रहकर मैंने अनेक युद्धों में पराक्रम कर दिखाये जिसके फलस्वरूप दुष्कीर्ति प्राप्त यह की कि मैं अल्प समय में पापभट के रूप में विख्यात हो गया था। धोखा देकर तलवार से पीठ पर पीछे से प्रहार करके हत्या करने की क्षुद्रता के लिए मैं सुभवें में सेनापति का सबसे अधिक प्रीतिपात्र बन गया था। ___ कोई मुझसे लडता हो या न लडता हो, सामना करता हो या सामना न करता हो, एवं युद्ध से भागने लगा हो, मैं ऐसी किसी को भी जीता न छोडता। इसलिए पल्ली के लोगों ने मुझे 'बली', 'निर्दय'और 'यमदूत' जैसे मेरी दुष्टता के सूचक नाम प्रदान किये थे। ___चूत में जीतकर प्राप्त किये धन से मैंने मित्रों का अपनी समृद्धि से आदरसत्कार किया और इस प्रकार मैं सब का माननीय बन गया। अपने घर के प्रति भावनाशून्य होकर मैं पल्ली में इस प्रकार कालदंड एवं यमदंड समान आचरण करता हुआ दिन गुजारने लगा। चोरों का तरुण दंपती को बंदी बनाना - किसी एक समय धंधा करने चोर गये और वे कोई तरुण दंपती को पकडकर पल्ली में ले आये । देवी को बलि चढाने के लिए उन दोनों को वे सेनापति के पास ले आये और उन तरुण और तरुणी को सेनापति को दिखाया।
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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