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________________ अध्याय-३ सम्यग्दर्शन के विषय में अन्य दर्शनों की विचारणा 'जैन दर्शन में सम्यक्त्व को मोक्ष मार्ग की साधना की नींव, बीज और प्रथम सोपान रूप से स्वीकार किया है। इसके अभाव में मोक्ष प्राप्ति दुर्लभ कहा है। सम्यक्त्व का यहाँ विशद विवेचन किया गया है। जैन दर्शन के अतिरिक्त जनेतर दर्शनों ने भी इसका अस्तित्व स्वीकार किया है या नहीं ? अन्य धर्म-दर्शनों ने इसे सम्यग्दर्शन रूप से अभिप्रेत किया है या अन्य नाम से अथवा इस के अस्तित्व को आवश्यक माना है या नहीं ? अब हम अन्य दर्शनों में इसके स्वरूप का समालोचनात्मक अध्ययन करेंगे। सर्वप्रथम बौद्ध धर्मदर्शन की ओर दृष्टि करेंगे। उसके पश्चात् सांख्य-योग दर्शन, न्याय-वैशेषिक दर्शन, वेदांत दर्शन का विवेचन करेंगे। उसके पश्चात् महाभारत, श्रीमद्भगवत्गीता, भागवत का अवलोकन करके ईसाई एवं इस्लाम धर्म-दर्शन में इस विषय पर विचार करेंगे। . .१. बौद्ध धर्म-दर्शन : सम्यक्त्व विचारणा - श्रमण संप्रदाय की शाखा में जैन के अतिरिक्त बौद्ध शाखा है तथा श्रमण भगवान् महावीर के समकालीन एवं निकट गौतम बुद्ध होने से प्रथम हम बौद्ध धर्म दर्शन में सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन के विचार व विकास पर दृष्टिपात् करेंगे। जिस प्रकार जैनागमों में “आचारांग" का चतुर्थ अध्ययन " सम्यक्त्व” नामक है, उसी प्रकार बौद्ध दर्शन के मज्झिम निकाय में " सम्मादिद्रि"-सम्यग्दृष्टि नामक नवम सुत्त है। इसमें सम्यग्दृष्टि की चर्चा की गई। जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन से युक्त अर्थात् सम्यग्दर्शन धारण करने वाले को सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। बौद्ध दर्शन में
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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