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________________ १७० . जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप इन सम्यकत्व के गुणस्थानों का भी उल्लेख किया है जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है । सामायिक के भेदों में प्रथम सम्यकत्व सामायिक है । इस प्रकार इस ग्रन्थ में सम्यकत्व विषय में विशद प्रकाश डाला गया है। (७) सम्यक्त्व-परीक्षा - इसका अपर नाम उपदेश-शतक है । यह विबुधविमलसूरि की. कृति है जिसमें सम्यकत्व-विषय सामग्री पर्याप्त उपलब्ध होती है । इनका. समय १८१३ है। ___ इस सूत्र के प्रथम अधिकार में सम्यकत्व का स्वरूप तथा यथाप्रवृत्तकरण आदि तीनों करणों का कथन किया है।' दूसरे अधिकार में शम संवेग आदि पांच लक्षण एवं नय-प्रमाण तथा स्याद्वाद से सुनिश्चित शंकादि पांच अतिचारों का वर्णन किया है। तृतीय अधिकार में निःशंका आदि आठ अंगों का विवेचन किया गया है। चतुर्थ अधिकार में सम्यकत्व की महिमा एवं आनंद कामदेव आदि श्रावक सम्यकत्वधारी थे उसका कथन किया गया है।' ___ इस प्रकार यह पूरा ग्रंथ सम्यकत्व की विषय-सामग्री से परिपूर्ण है। आगमेतर साहित्य में सम्यक्त्व के स्वरूप एवं तद्विषय गत विशेष उल्लेख प्राप्त होता है। तत्त्वार्थसूत्र से लोक प्रकाश प्रभृति हसने अवलोकन किया कि आगम साहित्य में जहाँ इसकी स्थिति यत्र तत्र विकीर्ण दशा में उपलब्ध होती थी वहाँ आगमेतर साहित्य में इसे स्पष्ट एवं व्यवस्थित रूप दिया । १. सम्यक्त्व परीक्षा, प्रथम अधिकार, गाथा ३-४ ॥ २. वही, द्वि० अ०, गाथा ११-१२ ।। ३. वही, तृ० अ०, गाथा २४-२७ ।। ४. वही, च० अ०, गाथा ३६, ५३, ५४, ३२, ४९, ६४, ६७ ॥ . -
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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