SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३६ ] उत्तराध्ययन सूत्रम् [ चतुर्दशाध्ययनम् अनन्तर उन्होंने उस घोर — अति विकट - तपकर्म का आचरण करना आरम्भ किया, जिसका प्रतिपादन अर्हतादि ने साधुओं को उद्देश रखकर किया है। उस तप रूप घोर कर्म के तीव्र अनुष्ठान से वे दोनों घोर पराक्रमी हुए अर्थात् उक्त तपरूप कर्म के प्रभाव से उन्होंने आत्मा के साथ लगे हुए कर्ममल को दूर करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की, अथवा यों कहिए कि उन्होंने कर्मरूप शत्रुओं को पराजित करने में पूर्ण पराक्रम दिखलाया । सारांश कि प्रथम धर्म को भली प्रकार से जानने का प्रयत्न करना चाहिए । जब उसका यथार्थ बोध हो जाय तब विषयभोगों का परित्याग करके ज्ञानपूर्वक तपस्या का आचरण करना चाहिए । उसके विना आत्मा के साथ लगे हुए कर्मरूप मल का दुग्ध होना असम्भव है । अत: ज्ञानपूर्वक तपकर्म के अनुष्ठान से शुद्ध हुई आत्मा परमात्मा के स्वरूप को प्राप्त हो जाती है, जो कि सब का परम ध्येय और परम लक्ष्य है । अब प्रस्तुत विषय का उपसंहार और निगमन निम्नलिखित दो गाथाओं में करते हैं एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभडव्विग्गा, दुक्खरसन्तंगवेसिणो ॥५१॥ एवं ते क्रमशो बुद्धाः सर्वे धर्मपरायणाः । जन्ममृत्युभयोद्विग्नाः, दुःखस्यान्तगवेषिणः ॥५१॥ पदार्थान्वयः – एवं - इस प्रकार ते- वे छओं जीव कमसो-क्रम से बुद्धाप्रतिबोध को प्राप्त हुए सव्वे - सर्व धम्मपरायणा - धर्मपरायण हुए जम्म- मच्चुभउ-विग्गा - जन्म-मृत्यु के भय से उद्विग्न हुए तथा दुक्ख संत - दुःख के अन्त के गवेसिणो-गवेषक हुए । मूलार्थ -- इस प्रकार वे छः जीव क्रम से प्रतिबोध को प्राप्त हुए और सभी धर्म में तत्पर हुए तथा जन्म और मृत्यु के भय से उद्विग्न होकर दुःखों के अन्त के गवेषक बने । टीका- अब शास्त्रकार कहते हैं कि इस प्रकार वे छओं जीव क्रम से प्रतिबोध को प्राप्त हुए। यथा-२ -साधुओं के दर्शन से दोनों कुमारों को प्रतिबोध हुआ, कुमारों के कथन •
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy