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________________ चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दी भाषाटीकासहितम् । [ ६३७ से भृगुपुरोहित को वैराग्य हुआ, भृगुपुरोहित से उसकी धर्मपत्नी यशा को बोध हुआ, इन चारों को दीक्षित हुए जानकर कमलावती को वैराग्य हुआ और राणी के उपदेश से राजा प्रतिबोध को प्राप्त हुआ। इस प्रकार ये छः जीव अनुक्रम से एक दूसरे के उपदेश से धर्म में दीक्षित हुए अर्थात् संसार में विरक्त होकर सर्वविरति धर्म में एकनिष्ठा से तत्पर हो गये 1 संयम ग्रहण का मुख्य उद्देश्य जन्म-मरण के दृढतर बन्धन से मुक्त होना है। इसलिए जन्म, जरा और मृत्यु आदि दुःखों का अन्त किस प्रकार या किन उपायों से हो सकता है अर्थात् सर्वप्रकार के दुःखों का अन्त किस प्रकार से हो सकता है, वे इसी की गवेषणा में प्रवृत्त हुए । तात्पर्य कि सर्वविरतिरूप संयम द्वारा दुःखों का समूल बात करने के लिये कटिबद्ध हो गये 1 इसके अनन्तर क्या हुआ, अब इसी बात का उल्लेख करते हैं सासणे विगयमोहाणं, पुव्विं भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया ॥ ५२॥ शासने विगतमोहानां, पूर्व भावनाभाविताः । अचिरेणैव कालेन, दुःखस्यान्तमुपागताः ॥५२॥ पदार्थान्वयः — विगयमोहाणं - मोहरहित के सासणे - शासन में पुचि - पूर्वजन्म में भावणभाविया - भावना से भावित हुए अचिरेणेव - थोड़े ही काले - काल में दुक्ख्रस्संत-दुःखों के अंत को उवागया- प्राप्त हो गये—मुक्त हो गये । मूलार्थ - अर्हतु शासन में पूर्वजन्म की भावना से भावित हुए [ वे छओं जीव ] थोड़े ही काल में दुःखों के अन्त को प्राप्त हो गये अर्थात् — मुक्त हो गये । टीका - प्रतिबोध होने के फल का वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि. मोहनीय कर्म का समूलघात करने वाले श्रीअरिहंतदेव के शासन में जो पूर्वजन्म की भावना से भावित थे अर्थात् जिन्होंने पूर्वजन्म में भी तप और संयम का भूरित आराधन किया हुआ था— अतएव उसके प्रभाव से जिनके बहुत से कर्म क्षीण भी हो चुके थे-थोड़े ही काल में दुःखों के अन्त को प्राप्त हो गये । तात्पर्य कि शेष कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त हो गये 1
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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