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________________ २८५ हैं । इन व्यक्तियों में धरण भी एक है । मनोरथदत्त की बलि करते समय वह घबड़ा जाता है, अतः धरण उससे याचना करता है कि आप इसे छोड़ दीजिए और इसके बदले में मेरा बलिदान कीजिए । कालसेन तत्काल अपने उपकारी को पहचान लेता है और वह धरण की सहायता करता है। इस कथानक रूढ़ि द्वारा तीन बातें सिद्ध होती हैं: P (१) बलिदान की प्रथा का विरोध । ( २ ) नायक का चरित्रोत्कर्ष । (३) परहितार्थ स्वयं कष्ट सहन करना । ( २ ) परहितार्थ स्वयं कष्ट सहन करना -- इस रूढ़ि का प्रयोग पांचवें और छठवें भवों की कथाओं में हुआ है । जयकुमार विजय को सुख देने के लिए स्वयं अनेक कष्ट सहन करता है । इसी प्रकार धरण स्वयं करोड़ों प्रकार की विपत्तियां सहकर अपनी धोखेबाज पत्नी की प्राणरक्षा के लिए मांस, रक्त तक का दान कर देता है । ( ३ ) स्वामिभक्त सेवक, स्नेही मित्र और प्रत्युपकारी की योजना -- इस कथानक रूढ़ि का व्यवहार, हरिभद्र ने प्रायः प्रत्येक भव की कथा में किया है । सनत्कुमार का विभावसुमित्र द्वितीय प्राण था । कालसेन और मौर्य चाण्डाल जैसे कृतज्ञ व्यक्ति भी कथा को पर्याप्त गतिशील बनाते हैं । (४) सांकेतिक भाषा - - इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र ने एक लघु कथा में किया है। कथा में बताया गया है कि एक धनिक की बहू नदी में स्नान करने के लिए गयी, उसे देखकर एक युवक बोला--" नाना तरंगों से सुशोभित यहां नदी वृक्षों सहित नमस्कार करती है ।" स्त्री ने उत्तर दिया--"नदी का कल्याण हो ।" इस प्रकार "सांकेतिक भाषा के प्रयोग द्वारा कथा को गतिशील बनाया है । (५) कुलटाओं की अनेक प्रवंचनाएँ--इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र की अनेक लघुकथाओं में पाया जाता है। एक कथा में बताया है कि एक वणिक् की भार्या किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करने लगी । अतः उसने अपने पति को गाड़ी में ऊंट के लेंड़ा भरकर बेचने भेज दिया। उज्जयिनी में पहुंचने पर मूलदेव की चालाकी से उसने उन लेड़ों को बेचा और पत्नी के चरित्र से अवगत हो, उसे सुधारा। हरिभद्र ने "नारी बुद्धि कौशल ", शीर्षक कथा में धनिक और राज परिवार की कुलटाओं का कथानक रूढ़ियों रूप में उल्लेख किया है । (६) गणिका द्वारा दरिद्र नायक को स्वीकार करना और अपनी माता का तिरस्कार - हरिभद्र की एक कथा में आया है कि प्रसिद्ध गणिक देवदत्ता ने धनिक अचल का त्याग कर अपनी मां की अवहेलना कर मूलदेव को अपनाया । (७) शरणागत की रक्षा -- यह हरिभद्र की अत्यधिक प्रिय कथानक रूढ़ि है । समराइच्चकहा में इसका कई स्थलों पर प्रयोग आया है। मौर्य चाण्डाल को धरण शरण देता है, सनत्कुमार चोर को शरण देता है तथा सनत्कुमार का पिता वीरमदेव को शरण देता है और वीरमदेव एक चोर को शरण देने वालों को अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं, जिनके कारण कथा में गति आती है, पर शरण देने वाले अपने प्रण पर रहते 1 हैं १- द०हा०, पृ० १९३ । २ -- वही, पृ० ३ - - वही, पृ० Jain Education International ११४ ॥ १९३-९४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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