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________________ २८४ ८--शरीर वैज्ञानिक अभिप्राय कुछ कथानक रूढ़ियां ऐसी हैं, जिनके शरीर वैज्ञानिक तथ्य है--जैसे गर्भिणी की दोहद कामना। यह एक वैज्ञानिक और अनुभवसिद्ध तथ्य है कि गभिणी स्त्री के मन में असामयिक वस्तओं के खाने की इच्छा उत्पन्न होती है, उसके शरीर में कुछ तस्वा की कमी रहती है, जिनकी पूत्ति के लिए उसके मन में विविध अस्वाभाविक वस्तुओं को खाने की इच्छा उत्पन्न होती है। गभिणी स्त्री का आदर अधिक किया जाता है, इसलिए उसकी समस्त कामनाओं की पूत्ति की जाती है। इसी वैज्ञानिक तथ्य के आधार पर हरिभद्र ने अपनी प्राकृत कथाओं में निम्नांकित इस श्रेणी की रूढ़ियों को स्थान दिया (१) दोहद--यह अत्यन्त प्रिय कथानक रूढ़ि है। हरिभद्र ने इसका प्रचुर मात्रा में व्यवहार किया है। द्वितीय भव की कथा में श्रीकान्ता को अभयदान, तीर्थाटन आदि का दोहद उत्पन्न होने की बात कही गयी है। तृतीय भव की कथा में जालिनी को समस्त प्राणियों को आनन्दित करने, देवायतनों की पूजा करने एवं धर्म संलग्न तपस्वियों की परिचर्या करने का दोहद उत्पन्न होता है। द्वितीय भव की कथा में कुसुमावली को अपने पति सिंहकुमार की आंतें भक्षण करने का दोहद उत्पन्न होता है। इस दोहद की रूढ़ि द्वारा कथानक को चमत्कृत करने के साथ कथा में गतिशीलता भी उत्पन्न की गयी है। (२) शारीरिक लक्षणों द्वारा भविष्य निरूपण--जब नायिका अपने प्रिय के किसी कठिनाई में पड़ जाने के कारण घबड़ा जाती है, उस समय कोई आचार्या उसके शारीरिक लक्षणों के निरूपण द्वारा उसे धैर्य बंधाती है और कहती है कि तुम्हारे अंगों को यह आकृति ही तुम्हारे अवैधव्य की सूचना देती है। आठवें भव में रत्नवती को सुसंगता गणिनी उसके स्वर एवं शारीरिक लक्षणों द्वारा धैर्य देती हुई उसके स्वर्ण भविष्य की सूचना देती है। (३) पुत्र-प्राप्ति के लिए वरदान की कामना--श्रीदेवी ने वरदान प्राप्त किया। (४) किसी अवसर विशेष पर शिरोवेदना--यह कथानक रूढ़ि बहुत प्रिय है। हरिभद्र ने गुणसेन की शिरोवेदना द्वारा अग्निशर्मा की पारणा में विघ्न दिखलाया है । यह कथा को गति प्रदान करती है। (५) भयंकर व्याधि को दूर करने के लिए अदृश्य सहायता की प्राप्ति--अर्हदत्त को भयंकर व्याधि उत्पन्न हो जाती है, उसके शमन का उपाय वैद्यों के पास नहीं। अतः अदृश्य शक्ति आकर सहायता करती है। यह कथानक रूढ़ि रुकती हुई कथा को आगे बढ़ाती है। ९--सामाजिक परम्परा, रीति-रिवाज और परिस्थितियों की द्योतक रूढ़ियां। समस्त कथानक रूढ़ियां सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से उत्पन्न होती हैं। कथा में चमत्कार एवं अन्य गुणधर्म उत्पन्न करने के साथ ये अपने समय की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति पर पूरा प्रकाश डालती हैं। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में इस श्रेणी की निम्न कथानक रूढ़ियां उपलब्ध है:-- (१) मानव बलिदान--हरिभद्र ने बतलाया है कि कालसेन देवी को प्रसन्न करने के लिए मानवबलि देने का प्रबन्ध करता है। उसके अनुचर मनुष्यों को पकड़ कर लाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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